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प्रज्ञापना सूत्र
पृथक्त्व, उरपरिसर्प स्थलचरों का योजन पृथक्त्व, भुजपरिसर्प स्थलचरों और पक्षियों का शरीर प्रमाण धनुष पृथक्त्व होता है। इस प्रकार तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर की अवगाहना कही गयी है।
मणूस ओरालिय सरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गव्यूति की होती है।
एवं अपजत्ताणं जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखिजइभागं।
भावार्थ - अपर्याप्तक मनुष्यों के औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है।
सम्मुच्छिमाणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखिज्जइभाग।
भावार्थ - सम्मच्छिम मनुष्यों के औदारिक शरीर की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है। .
गब्भवक्कंतियाणं पज्जत्ताण य जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं॥५७१॥
भावार्थ - गर्भज मनुष्यों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गव्यूति की होती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मनुष्य औदारिक शरीर की अवगाहना का प्रमाण कहा गया है। उत्कृष्ट तीन गाऊ की अवगाहना देवकुरु आदि क्षेत्रों के मनुष्यों की अपेक्षा समझनी चाहिए।
वेउव्वियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते?
गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - एगिदिय वेउव्विय सरीरे य पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे य।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वैक्रिय शरीर कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! वैक्रिय शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - एकेन्द्रियवैक्रिय शरीर और पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर।
जइ एगिंदिय वेउव्विय सरीरे किं वाउक्काइय एगिदिय वेउव्विय सरीरे, अवाउक्काइय एगिंदिय वेउव्विय सरीरे?
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