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बीसवां अन्तक्रिया पद - उद्वर्तन द्वार
३०९
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तेजस्कायिक जीव, इन्हीं में से निकल कर सीधा मनुष्य तथा वाणव्यन्तर ज्योतिषी वैमानिकों में उत्पन्न होता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एवं जहेव तेउक्काइए णिरंतरं एवं वाउक्काइए वि॥५६३॥
भावार्थ - इसी प्रकार जैसे तेजस्कायिक जीव की अनन्तर उत्पत्ति आदि के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार वायुकायिक के विषय में भी समझ लेना चाहिए।
बेइंदिए णं भंते! बेइंदिएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववजेजा? गोयमा! जहा पुढवीकाइया, णवरं मणुस्सेसु जाव मणपजवणाणं उप्पाडेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या बेइन्द्रिय जीव, बेइन्द्रिय जीवों में से निकल कर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है? - उत्तर - हे गौतम! जैसे पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा है, वैसा ही बेइन्द्रिय जीवों के विषय में भी समझना चाहिए। विशेष अन्तर यह है कि पृथ्वीकायिक जीवों के समान बेइन्द्रिय जीव मनुष्यों में उत्पन्न होकर अन्तक्रिया नहीं कर सकते किन्तु वे मन:पर्यायज्ञान तक प्राप्त कर सकते हैं।
एवं तेइंदिया चउरिदिया वि जाव मणपजवणाणं उप्पाडेजा। भावार्थ - इसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय जीव भी यावत् मनःपर्याय ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। जेणं भंते! मणपजवणाणं उप्पाडेजा से णं केवलणाणं उप्पाडेजा? गोयमा! णो इणढे समढे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! विकलेन्द्रिय मनुष्यों में उत्पन्न हो कर मनःपर्यायज्ञान प्राप्त करता है, तो क्या वह केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिए णं भंते! पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववजेजा?
गोयमा! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या पंचेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में से उद्वृत्त होकर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है?
उत्तर-हे गौतम! उनमें से कोई पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता है। जे णं भंते! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए?
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