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तरफ जघन्य गुण हो दूसरी तरफ उससे एकाधिक गुण हो तो स्निग्ध एवं रूक्ष का बंध हो सकता है। बन्ध प्रायोग्य स्कन्धों में स्निग्ध या रूक्ष गुण हों तभी बंध होता है, अन्यथा नहीं ।
स्निग्ध व रूक्ष का बंध ( तालिका)
दिगम्बर मान्यता
क्रं०
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
जघन्य जघन्य
जघन्य एकाधिक
जघन्य द्वव्याधिक
जघन्य त्रयाधिक
जघन्येतर सम जघन्येतर
जघन्येतर एकाधिक
जघन्येतर द्वयाधिक
जघन्येतर त्रयाधिक
सदृश
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
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प्रज्ञापना सूत्र
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध है
बन्ध नहीं
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→
असदृश
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध है
बन्ध नहीं
श्वेताम्बर मान्यता
असदृश
सदृश
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
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बन्ध है
बन्ध है
गइ परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा फुसमाण गइ परिणामे य अफुसमाण गइ परिणामे य अहवा दीह गइ परिणामे य हस्स गइ परिणामे य २ ।
बन्ध नहीं
बन्ध नहीं
बन्ध है
बन्ध है
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् । गति परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
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उत्तर - हे गौतम! गति परिणाम दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है- १. स्पृशद् गति परिणाम और २. अस्पृशद् गति परिणाम अथवा १. दीर्घ गति परिणाम और २. ह्रस्व गति परिणाम । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में गति परिणाम दो प्रकार का कहा गया है स्पृशद् गति परिणाम (फुसमाण गति परिणाम) और अस्पृशद् गति परिणाम (अफुसमाण गई परिणाम ) । दूसरी वस्तु को स्पर्श करते हुए जो गति परिणाम होता है वह स्पृशद् गति परिणाम कहलाता है जैसे प्रयत्न पूर्वक जल पर फेंकी हुई ठीकरी जल का स्पर्श करती हुई जाती है। जो वस्तु गति करते हुए बीच में किसी के साथ स्पृष्ट नहीं होती वह अस्पृशद् गति परिणाम है जैसे आकाश में उड़ता हुआ पक्षी, उड़ते हुए किसी का स्पर्श नहीं करता । अथवा गति परिणाम के दो भेद - १. दीर्घ गति परिणाम और २. ह्रस्व गति परिणाम । दूर के देशान्तर की प्राप्ति का परिणाम दीर्घ गति परिणाम है। इसके विपरीत समीप के देशान्तर की प्राप्ति का परिणाम हस्व गति परिणाम है।
बन्ध नहीं
बन्ध है
बन्ध है
बन्ध है
बन्ध है
बन्ध
बन्ध है
बन्ध है
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