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________________ २५० oooooo तो उसे स्थावर बनना ही पड़ता है । अतः त्रसकाय की कायस्थिति दो हजार सागरोपम संख्यात वर्ष. अधिक बताई गयी है। अकाइए णं भंते! पुच्छा ? गोयमा! अकाइए साइए अपज्जवसिए । - भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! अकायिक (सिद्ध भगवान्) कितने काल तक अकायिक रूप में बना रहता है ? उत्तर - हे गौतम! अकायिक जीव सादि - अनन्त काल तक होते हैं । प्रज्ञापना सूत्र - सकाइयअपज्जत्तए णं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सकायिक अपर्याप्तक कितने काल तक सकायिक अपर्याप्तक रूप में लगातार रहता है ? उत्तर - हे गौतम! सकायिक अपर्याप्तक जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक सकायिक अपर्याप्तक रूप में लगातार रहता है। एवं जाव तसकाइयअपज्जत्तए । भावार्थ - इसी प्रकार अप्कायिक अपर्याप्तक से लेकर त्रसकायिक अपर्याप्तक तक समझना चाहिए। सकाइयपज्जत्तएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं सागरोवम सयपुहुत्तं साइरेगं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सकायिक पर्याप्तक के विषय में भी पूर्ववत् पृच्छा है, उसका क्या समाधान है ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ सागरोपम पृथक्त्व तक वह सकायिक पर्याप्तक रूप में रहता है। पुढवीकाइए पज्जत्तएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जाई वाससहस्साइं । - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीव के विषय में भी पूर्ववत् पृच्छा है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक पृथ्वीकायिक पर्याप्तक रूप में बना रहता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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