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प्रज्ञापना सूत्र
वाणव्यंतर आदि में परिणाम
वाणमंतरा गइ परिणामेणं देव गइया, जहा असुरकुमारा एवं जोइसिया वि, णवरं लेसा परिणामेणं तेउ लेस्सा। वेमाणिया वि एवं चेव णवरं लेसा परिणामेणं तेउ सा वि पम्ह लेसा वि सुक्क लेसा वि, से तं जीव परिणामे ॥ ४१६ ॥
भावार्थ - वाणव्यंतर देव गति परिणाम से देव गति वाले हैं। शेष सारा वर्णन असुरकुमारों की. तरह समझना चाहिये। इसी प्रकार ज्योतिषी देवों में भी समझना चाहिये। विशेषता यह है कि लेश्या परिणाम से वे केवल तेजोलेश्या वाले ही होते हैं। वैमानिक देव के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिये । विशेषता यह है कि लेश्या परिणाम से वे तेजोलेश्या वाले भी होते हैं, पद्मलेश्या वाले भी होते हैं और शुक्ल लेश्या वाले भी होते हैं। इस प्रकार जीव परिणाम कहा गया है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों की परिणाम संबंधी प्ररूपणा की गयी है। ज्योतिषी देवों में एक तेजोलेश्या ही होती है जबकि वैमानिक देवों में तीनों शुभ लेश्याएं (तेजोलेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या) होती है।
अजीव परिणाम प्रज्ञापना
अजीव परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोमा ! दसविहे पण्णत्ते । तंजहा - बंधण परिणामे १, गइ परिणामे २, संठाण परिणामे ३, भेय परिणामे ४. वण्ण परिणामे ५, गंध परिणामे ६, रस परिणामे ७, फास परिणामे ८, अगुरुयलहुय परिणामे ९, सह परिणामे १० ॥ ४१७ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अजीव परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! अजीव परिणाम दस प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है १. बन्धन परिणाम २. गति परिणाम ३. संस्थान परिणाम ४. भेद परिणाम ५. वर्ण परिणाम ६. गन्ध परिणाम ७. रस परिणाम ८. स्पर्श परिणाम ९. अगुरुलघु परिणाम और १०. शब्द परिणाम ।
विवेचन - अजीव अर्थात् जीव रहित वस्तुओं के परिवर्तन से होने वाली उनकी विविध अवस्थाओं को अजीव परिणाम कहते हैं ।
बंध परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोमा ! दुविहे पण्णत्ते ।
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