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प्रज्ञापना सूत्र
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उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शुक्ल लेश्या इनसे भी वर्ण में इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है।
एयाओ णं भंते! छल्लेस्साओ कइसु वण्णेसु साहिजंति? .. .
गोयमा! पंचसु वण्णेसु साहिति, तंजहा - कण्हलेस्सा कालएणं वण्णणं साहिजइ, णीललेस्सा णीलएणं वण्णेणं साहिजइ, काउलेस्सा काललोहिएणं वण्णेणं साहिजइ, तेउलेस्सा लोहिएणं वण्णेणं साहिजइ, पम्हलेस्सा हालिइएणं वण्णेण साहिज्जइ, सुक्कलेस्सा सुक्किल्लएणं वण्णेणं साहिजइ॥५१४॥
कठिन शब्दार्थ - साहिजति - कही जाती है। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ये छहों लेश्याएं कितने वर्णों द्वारा कही जाती है ?
उत्तर - हे गौतम! ये पांच वर्णों वाली हैं। वे इस प्रकार हैं - कृष्ण लेश्या काले वर्ण द्वारा कही जाती है, नील लेश्या नीले वर्ण द्वारा कही जाती है, कापोत लेश्या काले और लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, तेजो लेश्या लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, पद्म लेश्या पीले वर्ण द्वारा कही जाती है और शुक्ल लेश्या श्वेत (शुक्ल) वर्ण द्वारा कही जाती है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में छह द्रव्य लेश्याओं के वर्ण का निरूपण किया गया है।
___३. रस द्वार कण्हलेस्सा णं भंते! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता?
गोयमा! से जहाणामए णिंबे इ वा णिंबसारे इ वा णिंबछल्ली इ वा णिंबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफलए इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुंबी इ वा कडुगतुंबिफले इ वा खारतउसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालीपुष्फे इ वा मियवालुंकी इ वा मियवालुंकीफले इ वा घोसाडए इ वा घोसाडईफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा।
भवेयारूवा?
गोयमा! णो इणढे समढे, कण्हलेस्सा णं एत्तो अणिद्रुतरिया चेव जाव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता॥५१५॥
कठिन शब्दार्थ- आसाएणं - आस्वाद-रस से। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कृष्ण लेश्या आस्वाद (रस) से कैसी कही गयी है ?
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