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________________ सत्तरहवाँ लेश्या पद-चतुर्थ उद्देशक - वर्ण द्वार २११ गोयमा! से जहाणामए खइरसारए इ वा कइरसारए इ वा धमाससारे इ वा तंबे इ वा तंब करोडए इ वा तंबच्छि वाडियाए इ वा वाइंगणि कुसुमे, इ वा कोइलच्छद कुसुमे इ वा जवासा कुसुमे इ वा। भवेयारूवे? गोयमा! णो इणढे समढे। काउलेस्सा णं एत्तो अणिट्ठयरिया जाव अमणामयरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता॥५१०॥ कठिन शब्दार्थ - खइरसारए - खदिरसार-खदिर (कत्था) के वृक्ष का सार (मध्यवर्ती) भाग, तंबकरोडए - ताम्र करोटक, वाइंगणि कुसुमे - बैंगन का फूल। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कापोतलेश्या वर्ण से कैसी होती है ? उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई खदिर का सार भाग हो, करीर सार (कैर का सार भाग) हो, अथवा धमास वृक्ष का सार भाग हो, ताम्बा हो या ताम्बे का कटोरा हो या ताम्बे के वर्ण की फली हो, या बैंगन का फूल हो, कोकिलच्छद (तैलकण्टक) वृक्ष का फूल (अथवा कोयल के शरीर का ताम्रवर्णी अवयव) हो, अथवा जवासा का फूल हो, इनके काले और लाल समान वर्ण वाली कापोतलेश्या होती है। प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कापोत लेश्या वास्तव में इसी रूप की होती है? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। कापोत लेश्या वर्ण से इससे भी अनिष्टतर यावत् अत्यधिक अमनाम कही गयी है। । तेउलेस्सा णं भंते! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता? गोयमा! से जहाणामए सस रुहिरे इ वा उरब्भ रुहिरे इ वा वराह रुहिरे इ वा संबर रुहिरे इ वा मणुस्स रुहिरे इ वा इंदगोवे इ वा बालेंदगोवे इ वा बालदिवायरे इ वा संझारागे इ वा गुंजद्धरागे इ वा जाइ हिंगुलए इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा लोहियक्खमणी इ वा किमिराग कंबले इ वा गयतालुए इ वा चीणपिट्ठरासी इ वा पारिजायकुसुमे इ वा जासुमणकुसुमे इ वा किंसुय पुष्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुजीवए इ वा। भवेयारूवा? गोयमा! णो इणढे समढे। तेउलेस्सा णं एत्तो इद्रुतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता॥५११॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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