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२०८ .
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई वैडूर्यमणि काले सूत्र में या नीले सूत्र में, लाल सूत्र में या पीले सूत्र में अथवा श्वेत सूत्र में पिरोने पर वह उसी के रूप में यावत् उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती है, इसी प्रकार हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण,लेश्या, नील लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या को प्राप्त होकर उन्हीं के रूप में यावत् उन्हीं के वर्णादि रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती है।
से णूणं भंते! णीललेस्सा किण्हलेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुजो-भुजो परिणमइ?'
हंता गोयमा! एवं चेव।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या नील लेश्या, कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या को पाकर उन्हीं के स्वरूप में यावत् उन्हीं के वर्णादि रूप में बार-बार परिणत होती है?
उत्तर - हे गौतम! ऐसा ही है, जैसा कि ऊपर कहा गया है।
काउलेस्सा किण्हलेसंणीललेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं तेउलेस्सा किण्हलेस्सं णीललेस्सं काउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं पम्हलेस्सा किण्हलेस्सं णीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं सुक्कलेस्सं।
भावार्थ - इसी प्रकार कापोत लेश्या-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, तेज़ो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या को प्राप्त होकर इसी प्रकार तेजो लेश्या-कृष्ण लेश्या, कापोत लेश्या, पद्म लेश्या और. शुक्ल लेश्या को प्राप्त होकर, इसी प्रकार पद्म लेश्या-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या को प्राप्त होकर उनके स्वरूप में तथा उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में परिणत हो जाती है। ..
से णूणं भंते! सुक्कलेस्सा किण्हलेस्सं णीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं पप्प जाव भुजो-भुजो परिणमइ?
हंता गोयमा! एवं चेव॥५०७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या शुक्ल लेश्या-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या और पद्म लेश्या को प्राप्त होकर यावत् उन्हीं के स्वरूप में तथा उन्हीं के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में बार-बार परिणत होती है? .
उत्तर - हाँ गौतम! ऐसा ही है, जैसा कि ऊपर कहा गया है। विवेचन - कृष्ण लेश्या-नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या
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