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________________ सत्तरहवाँ लेश्या पद-द्वितीय उद्देशक - विविध लेश्या वाले चौबीस.... १७३ एएसि णं भंते! वणस्सइकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य जहा एगिंदियओहियाणं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या से लेकर यावत् तेजो लेश्या वाले वनस्पतिकायिकों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार समुच्चय-औधिक एकेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार वनस्पतिकायिकों का अल्पबहुत्व भी समझ लेना चाहिए। . बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं जहा तेउकाइयाणं॥४८९॥ भावार्थ - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व तेजस्कायिकों के समान होता है। विवेचन - पृथ्वी, अप्, वनस्पतिकायिकों में चार लेश्याएं होने के कारण इनका अल्प बहुत्व समुच्चय एकेन्द्रिय के समान समझ लेना चाहिए। तेउकाय, वायुकाय में तीन लेश्याएं (कृष्ण, नील और कापोत) है उनका अल्प बहुत्व इस प्रकार हैं - सबसे थोड़े कापोत लेश्या वाले, उनसे नील लेश्या वाले विशेषाधिक और उनसे भी कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। यही अल्प बहुत्व तीन विकलेन्द्रियों में भी समझना चाहिए। ... एएसि णं भंते! पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? ___ गोयमा! जहा ओहियाणं तिरिक्ख जोणियाणं, णवरं काउलेस्सा असंखिज . गुणा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन कृष्ण लेश्या वालों से लेकर यावत् शुक्ल लेश्या वाले पंचेन्द्रिय - तिर्यंच योनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं? . . उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार औधिक समुच्चय तिर्यंचों का अल्पबहुत्व कहा गया है, उसी . प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेषता यह है कि कापोत लेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यच असंख्यात गुणा हैं। सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाणं जहा तेउकाइयाणं। भावार्थ - कृष्णादि लेश्या वाले समूछिम-पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों का अल्पबहुत्व तेजस्कायिकों के अल्पबहुत्व के समान समझना चाहिए। गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाणं जहा ओहियाणं तिरिक्ख जोणियाणं, णवरं काउलेस्सा संखिज गुणा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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