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प्रज्ञापना सूत्र
अंतर्गत अति तीव्र वेदना न हो ऐसे नरकावासों में ही उत्पन्न होते हैं। अल्प स्थिति वाले होने से वहाँ वेदना भी अल्प होती है। अथवा संज्ञीभूत यानी पर्याप्त होने से वे महावेदना वाले हैं और असंज्ञीभूत अल्पवेदना वाले होते हैं क्योंकि अपर्याप्त होने से प्रायः मन रूप करण के अभाव में उन्हें वेदना का अनुभव नहीं होता। अथवा संज्ञा अर्थात् सम्यग्-दर्शन जिन्हें हैं वे संज्ञी-सम्यग्दृष्टि है। संज्ञीभूत महावेदना वाले हैं। क्योंकि पूर्वकृत कर्म के विपाक का स्मरण करते हुए उन्हें महान् दुःख होता है कि हमने सकल दुःखों का क्षय करने वाले अर्हत्प्रणीत धर्म का आचरण न किया जिस कारण नरक में उत्पन्न होना पड़ा है। इसलिए वे महावेदना वाले हैं जो असंज्ञी-मिथ्यादृष्टि हैं वे 'अपने किये हुए कर्मों का ही यह फल है', ऐसा नहीं जानते, अत: पश्चात्ताप रहित मानस वाले होने से वे अल्पवेदना वाले होते हैं।
- यहाँ पर संज्ञीभूत, असंज्ञीभूत शब्दों के तीन अर्थ किये गये हैं। उन तीनों अर्थों में से आगे का . वर्णन देखते हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय अर्थ करना अधिक संगत लगता है।
छाद्वार णेरइया णं भंते! सव्वे समकिरिया? गोयमा! णो इणढे समढे। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समकिरिया?'
गोयमा! णेरइया तिविहा पण्णत्ता। तंजहा-सम्मट्ठिी, मिच्छट्टिी, सम्मामिच्छट्ठिी। तत्थ णं जे ते सम्मट्टिी तेसि णं चत्तारि किरियाओ कजंति, तंजहा - आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया। तत्थ णं जे ते मिच्छट्ठिी जे य सम्मामिच्छट्टिी तेसि णं णियइयाओ पंच किरियाओ कजंति, तंजहा - आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादसणवत्तिया, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'णेरइया णो सव्वे समकिरिया' ॥६॥॥४७९॥
कठिन शब्दार्थ - समकिरिया - समान क्रिया वाले, णियइयाओ - नियत (निश्चित) रूप से। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सभी नैरयिक क्या समान क्रिया वाले होते हैं? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि सभी नैरयिक समान क्रिया वाले नहीं होते?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक तीन प्रकार के कहे गये हैं - सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और
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