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सोलहवां प्रयोग पद - गति प्रपात के भेद-प्रभेद
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विवेचन - उद्दिश्य प्रविभक्त गति में आचार्य आदि के दर्शन करने इत्यादि किसी प्रयोजन से जाना (गमन किया) होता है। आचार्य आदि की आज्ञा में विचरना उनकी नेश्राय में रहना यह तो उपसम्पद्यमान गति कहलाती है।
से किं तं चउपुरिस पविभत्त गई?
चउपुरिस पविभत्त गई से जहाणामए चत्तारि पुरिसा समगं पट्ठिया समगं पजवट्ठिया १, समगं पट्ठिया विसमं पजवट्ठिया २, विसमं पट्ठिया समगं पजवट्ठिया ३, विसमं पट्ठिया विसमं पज्जवट्ठिया ४, से तं चउपुरिस पविभत्त गई १४। .
कठिन शब्दार्थ - समगं - एक साथ, पज्जवट्ठिया - प्रस्थान हुआ, पट्ठिया - पहुँचे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! चतुःपुरुष प्रविभक्त गति किसे कहते हैं?
उत्तर - हे गौतम! जैसे - १. किन्हीं चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ और एक ही साथ पहुंचे २. दूसरे चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ किन्तु वे एक साथ नहीं आगे-पीछे पहुँचे ३. तीसरे चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान नहीं आगे-पीछे हुआ, किन्तु पहुँचे चारों एक साथ तथा ४. चौथे चार पुरुषों का प्रस्थान एक साथ नहीं आगे-पीछे हुआ और एक साथ भी नहीं आगे-पीछे पहुंचे, इन चारों पुरुषों की चार विकल्प रूप गति चतुःपुरुष प्रविभक्त गति कहलाती है। यह चतुःपुरुष प्रविभक्त गति का स्वरूप हुआ।
से किं तं वंक गई?
वंक गई चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहा-घट्टणया, थंभणया, लेसणया, पवडणया, से तं वंक गई १५।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वक्र गति कितने प्रकार की कही गई है ? .
उत्तर - हे गौतम! वक्र गति चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. घट्टन से २. स्तम्भन से ३. श्लेषण से और ४. प्रपतन से। यह वक्र गति का स्वरूप हुआ।
से किं तं पंक गई? .
पंक गई से जहाणामए केइ पुरिसे पंकसि वा उदयंसि वा कायं उव्विहिया उव्विहिया गच्छइ, से तं पंक गई १६ ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पंक गति का क्या स्वरूप है ?
उत्तर - हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष कादे में (कीचड़ में) अथवा जल में अपने शरीर को दूसरे के साथ जोड़कर गमन करता है, उसकी यह गति पंकगति कहलाती है। यह पंकगति का स्वरूप हुआ।
से किं तं बंधण विमोयण गई?
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