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________________ ६८ .... उत्तर - हे गौतम! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। झमझिम वेग देवाणं पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं छव्वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई | भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मध्यम- मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर प्रज्ञापना सूत्र - हे गौतम! मध्यम- मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्ताईस सागरोपम की कही गई है। मझिम उवरिम गेविज्जगाणं देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मध्यम-उपरितन (मध्य की त्रिक के ऊपर के अर्थात् प्रियदर्शन ) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! मध्यम-उपरितन (मध्य की त्रिक के ऊपर के अर्थात् प्रियदर्शन) ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य सत्ताईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की कही गई है। मज्झिम उवरिम विज्जग देवाणं अपज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । - भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! मध्यम - उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। - झम उवरिम विज्जग देवाणं पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! मध्यम - उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्ताईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम अट्ठाईस सागरोपम की कही गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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