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________________ 0000000000 चौथा स्थिति पद - वैमानिक देवों की स्थिति 000000000000000000000000 उत्तर - हे गौतम! सहस्रार कल्प के अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। सहस्सारे पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! सहस्रार कल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही - गई है ? उत्तर - हे गौतम! सहस्रार कल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम सतरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम अठारह सागरोपम की कही गई है। आणणं भंते! कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई । भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! आनत कल्प (नववां देवलोक ) के देवों की स्थिति कितने का की कही गई है ? - ६१ ....... 1 उत्तर - हे गौतम! आनत कल्प (नववां देवलोक ) के देवों की स्थिति जघन्य अठारह सागरोपमं की और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की कही गई है। आणए अपज्जत्तगाणं देवाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आनत कल्प के अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? . उत्तर - हे गौतम! आनत कल्प के अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। Jain Education International आणए पज्जत्तगाणं देवाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! आनत कल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! आनत कल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम उन्नीस सागरोपम कही गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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