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________________ ४४ 00000000000000000◆◆◆◆◆◆◆◆... प्रज्ञापना सूत्र सूरविमाणे पज्जत्तियाणं देवींणं पुच्छा गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिमब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक सूर्य विमानवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? 00000000000000000 उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सूर्य विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पांच सौ वर्ष अधिक अर्द्ध पल्योपम की कही गई है। गहविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं । भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! ग्रह विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! ग्रह विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट एक पल्योपम की कही गई है। गहविमाणे अपज्जत्त देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक ग्रह विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक ग्रह विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। गह विमाणे पज्जत्त देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं उभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं । भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! पर्याप्तक विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही - Jain Education International गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम की कही गई है। गहविमाणे णं भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहणेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं देवाण । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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