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________________ चौथा स्थिति पद - ज्योतिषी देवों की स्थिति ४१ अपज्जत्तिय जोइसिय देवीणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक ज्योतिषी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक ज्योतिषी देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। पज्जत्तियजोइसियदेवीणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णास वाससहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक ज्योतिषी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक ज्योतिषी देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्ध पल्योपम की कही गई है। चंदविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णणं चउपागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! चन्द्र विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! चन्द्र विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चौथा भाग उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की कही गई है। चंद विमाणे णं भंते! अपजत्तयदेवाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक चन्द्र विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक चन्द्र विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। चंद विमाणे णं पजत्तयाणं देवाणं पुच्छा? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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