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________________ ३० प्रज्ञापना सूत्र ........................0000000000◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆**** उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासी वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम चौरासी हजार वर्ष की कही गई है। गब्भवक्कंतिय चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई । - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। अपज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिि जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ २३३ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम की कही गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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