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________________ २८ ...................................................... प्रज्ञापना सूत्र ..............................00000000000000000000000000000000000 भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्त कम पूर्व कोटि की कही गई है। गब्भवक्कंतिय जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहू और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की कही गई है। अपज्जत्तगाणं पुच्छा? Jain Education International गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! अपर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ॥ २३२ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्त कम पूर्व कोटि (करोड़ पूर्व) की कही गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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