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बारहवाँ शरीर पद - नैरयिकों के बद्ध-मुक्त शरीर
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बद्धेल्लगा ते णं णत्थि। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं अणंता जहा ओरालिय मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - बद्ध और मुक्त। उनमें से जो बद्ध औदारिक शरीर हैं वे उनके नहीं होते। उनमें से जो मुक्त
औदारिक शरीर हैं वे अनन्त होते हैं जैसे औदारिक मुक्त शरीरों के विषय में कहा है उसी प्रकार यहाँ भी कह देना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिकों के बद्ध और मुक्त औदारिक शरीर के विषय में प्ररूपणा की गई है। नैरयिकों के बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते हैं क्योंकि जन्म से ही उनमें औदारिक शरीर संभव नहीं है। नैरयिकों के मुक्त औदारिक शरीरों का कथन औधिक मुक्त औदारिक शरीरों के समान ही समझ लेना चाहिये।
णेरइयाणं भंते! केवइया वेउब्विय सरीरा पण्णता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लंगा ते णं असंखिजा, असंखिजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखिजाओ सेढीओ पयरस्स असंखिज्जइभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुल पढम वग्गमूलं बिईय वग्गमूल पडुप्पण्णं, अहवा णं अंगुल बिईय वग्गमूल घणप्पमाणमित्ताओ सेढीओ। तत्थ णंजे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा।
कठिन शब्दार्थ - अंगुल पढम वग्गमूलं - अंगुल का प्रथम वर्गमूल, बिईय वग्गमूल पडुप्पण्णंदूसरे वर्गमूल प्रत्युत्पन्न, अंगुल बिईय वग्गमूल घणप्पमाणमित्ताओ - अंगुल के दूसरे वर्गमूल के घन परिमाण मात्र। --'भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के वैक्रिय शरीर कितने कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. बद्ध और २. मुक्त। उनमें जो बद्ध वैक्रिय शरीर हैं, वे असंख्यात हैं और वे काल से असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों में अपहृत होते हैं। क्षेत्र से प्रतर के असंख्यातवें भाग परिमाण असंख्यात श्रेणियों जितने हैं। उन श्रेणियों की विष्कंभ सूची अंगुल परिमाण आकाश प्रदेशों के प्रथम वर्गमूल को दूसरे वर्ग मूल से गुणित करने पर निष्पन्न राशि जितनी होती है। अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के घन परिमाण मात्र श्रेणियाँ जितनी हैं। उनमें जो मुक्त वैक्रिय शरीर हैं वे जिस प्रकार औदारिक के मुक्त शरीर कहे हैं उसी प्रकार समझना चाहिये।
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