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बारहवाँ शरीर पद - शरीरों के बद्ध-मुक्त भेद
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आहारक शरीर होते हैं तो उनकी संख्या जघन्य एक, दो या तीन होती है और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) सहस्रपृथक्त्व अर्थात् दो हजार से लेकर तीन हजार तक होती है। मुक्त आहारक शरीरों का परिमाण मुक्त औदारिक शरीरों की तरह समझ लेना चाहिए।
आहारक शरीर वाले सहस्र पृथक्त्व में भी दो, तीन हजार से अधिक नहीं समझना। क्योंकि आगे ३६ वें पद में केवली समुद्घात वाले शत पृथक्त्व बताया है। आहारक समुद्घात वाले में प्रारम्भिक समयों की विवक्षा करके आहारक वालों से भी केवली समुद्घात वालों को संख्यात गुणा ज्यादा बताया है। अत: आहारक समुद्घात वाले उनसे आधे से अधिक नहीं मिलने से प्रारम्भिक समयों (आहारक मिश्र योग) वाले दो सौ-तीन सौ जितने ही मिलेंगे। उससे पूर्ण आहारक योग वाले दस गुणे भी अधिक मान लिए जाय तो भी दो - तीन हजार से अधिक नहीं हो सकते हैं। १४ पूर्वधारी साधु तो सहस्र पृथक्त्व से ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि सभी १४ पूर्वधारी तो आहारक लब्धि फोड़ते नहीं है विशिष्ट परिस्थितिवश (चार कारणों से) ही कोई कोई आहारक लब्धि फोड़ते हैं अत: आहारक शरीर वाले कम ही मिलते हैं।
अर्थात् - जो मुक्त औदारिक शरीर हैं वे अनन्त हैं। काल से वे अनन्त उत्सर्पिणियों और अनन्त अवसर्पिणियों के समयों से अपहृत होते हैं, क्षेत्र से अनन्त लोक परिमाण है। द्रव्य से वे अभव्य जीवों से अनन्त गुणा हैं और सिद्ध भगवन्तों से अनन्तवें भाग हैं।
केवइया णं भंते! तेयग सरीरया पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ,
खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहिंतो अणंत गुणा, सव्वजीवाणं अणंत भाग ऊणा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवेहिंतो अणंतगुणा जीववग्गस्साणंतभागो। एवं कम्मगसरीराणि वि भाणियव्वाणि॥४०७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तैजस शरीर कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! तैजस शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. बद्ध और. २. मुक्त। उनमें से जो बद्ध हैं वे अनंत हैं। काल से अनंत उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से अनंत लोक परिमाण है। द्रव्य से सिद्धों की अपेक्षा अनन्त गुणा और अनंतवें भाग न्यून सर्व जीवों के जितने हैं। उनमें जो मुक्त हैं वे अनन्त हैं। काल से अनन्त लोक परिमाण है। द्रव्य से सभी जीवों से अनन्त गुणा और सभी जीवों के वर्ग के अनन्तवें भाग परिमाण है। इसी प्रकार कार्मण शरीर के विषय में भी कह देना चाहिए।
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