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३५४.
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा से एक वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है। किन्तु सर्व ग्रहण की अपेक्षा से वह नियम से पांच वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है। जो इस प्रकार है - काले, नीले, लाल, पीले और सफेद।
विवेचन - भाव से भाषा रूप में ग्रहण किये हुए द्रव्य, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले होते हैं। भाव से वर्ण वाले जिन भाषा द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है वे "गहण दव्वाइं" - ग्रहण द्रव्य - ग्रहण करने योग्य द्रव्य कितनेक एक वर्ण वाले, कितनेक दो वर्ण वाले, कितनेक तीन वर्ण वाले, कितनेक चार वर्ण वाले और कितनेक पांच वर्ण वाले होते हैं जबकि सर्व ग्रहण की अपेक्षा एक प्रयत्न से ग्रहण किये हुए सभी द्रव्यों के समुदाय की अपेक्षा वे नियम से पांच वर्ण वाले होते हैं। . .
ग्रहण द्रव्य - एक बार जो भाषा के द्रव्य स्कन्ध ग्रहण किये जाते हैं। उनमें प्रत्येक स्कन्ध में रहे हुए वर्ण आदि को बताना। इसे स्थान मार्गणा भी कहते हैं।
सर्व ग्रहण - सभी स्कन्धों के वर्णादि को समुच्चय रूप से बताना। इसे विधान मार्गणा भी कहते हैं।
जाई वण्णओ कालाई गिण्हइ ताई किं एगगुणकालाई गिण्हइ जाव अणंत गुणकालाइंगिण्हइ?
गोयमा! एगगुणकालाई वि गिण्हइ जाव अणंतगुण कालाई वि गिण्हइ। एवं जाव सुक्किल्लाइं वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव वर्ण से जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह एक गुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनंत गुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है?
उत्तर - हे गौतम! जीव एक गुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनंतगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है। इसी तरह यावत् शुक्ल वर्ण के द्रव्यों तक भी कह देना चाहिए। .
जाइं भावओ गंधमंताई गिण्हइ ताई किं एगगंधाई गिण्हइ, दुगंधाइं गिण्हइ?
गोयमा! गहणदव्वाइं पडुच्च एगगंधाइं वि गिण्हइ दुगंधाई वि गिण्हइ, सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा दुगंधाइं गिण्हइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! भाव से जीव जिन गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह एक गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है या दो गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है?
उत्तर - हे गौतम! ग्रहण की अपेक्षा से वह एक गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है तथा दो गंध वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है किन्तु सर्व ग्रहण की अपेक्षा नियम से दो गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है।
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