SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ प्रज्ञापना सूत्र की अपेक्षा यथार्थ वस्तु का प्रतिपादन करने के कारण यह भाषा प्रज्ञापनी है। इसका प्रयोग न तो किसी दूषित आशय से किया जाता है और न इनसे किसी को पीड़ा उत्पन्न होती है अतः ऐसी प्रज्ञापनी भाषा सत्य है, असत्य नहीं । नोट - कौनसा शब्द किस लिङ्ग का है, यह बात व्याकरण के द्वारा ज्ञात होती है । किन्तु आगे जाकर व्याकरण वालों ने भी लिख दिया है कि 'लिङ्गम् अतन्त्रम्' अर्थात् कौन सा शब्द किस लिङ्ग में चलता है यह निश्चित करना सम्पूर्ण रूप से निश्चय नहीं किया जा सकता है। जैसे कि 'दार' शब्द का अर्थ होता है स्वपत्नी (निजभार्या) । इस प्रकार इस शब्द का अर्थ स्त्री सूचक होते हुए भी इस (दार) शब्द के रूप . पुल्लिङ्ग में चलते हैं। इसी प्रकार दार, स्त्री ( भार्या) और कलत्र तीनों शब्द स्त्री अर्थ में आते हैं। किन्तु इनका लिङ्ग अलग अलग है। जैसे कि 'दार' शब्द का लिङ्ग ऊपर बताया जा चुका है कि वह पुल्लिंग में चलता है। स्त्री (भार्या) शब्द स्त्रीलिङ्ग में चलता है। कलत्र शब्द का अर्थ तो स्त्री ( भार्या) होता है । किन्तु कलत्र शब्द नपुंसक लिङ्ग में चलता है यथा कलत्रम् (एक वचन), कलत्रे ( द्विवचन), कलत्राणि ( बहुवचन) । इस प्रकार संस्कृत में अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका हिन्दी अर्थ स्त्रीलिङ्ग, पुल्लिङ्ग आदि में दिखाई देता है किन्तु संस्कृत में भिन्न-भिन्न लिङ्ग में चलते हैं अत: आखिर में वैयाकरण विद्वानों ने भी यह लिख दिया है कि 'लिङ्गं अतन्त्रम्' किस शब्द का कौनसा लिङ्ग है, ऐसा निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆600 अह भंते! जा य इत्थी आणमणी *, जा य पुम आणमणी, जा य णपुंसग आणमणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जा थ इत्थी आणमणी, जा य पुम आणमणी, जा य णपुंसग आणमणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ ३७६ ॥ Jain Education International कठिन शब्दार्थ - आणमणी ( आणवणी) - आज्ञापनी । - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! क्या जो यह स्त्री आज्ञापनी, पुरुष आज्ञापनी और नपुंसक आज्ञापनी भाषा है वह प्रज्ञापनी है ? वह भाषा मृषा नहीं है ? उत्तर - हाँ गौतम! स्त्री आज्ञापनी, पुरुष आज्ञापनी और नपुंसक आज्ञापनी भाषा प्रज्ञापनी है और यह भाषा मृषा-असत्य नहीं है। विवेचन - जिस भाषा से किसी को आज्ञा दी जाए वह आज्ञापनी भाषा कहलाती है। जिस भाषा से किसी स्त्री को आज्ञा दी जाए तो वह स्त्री आज्ञापनी, पुरुष को आज्ञा दी जाए वह पुरुष आज्ञापनी और किसी नपुंसक को आज्ञा दी जाए वह नपुंसक आज्ञापनी कहलाती है। आज्ञापनी भाषा सिर्फ आज्ञा * पाठान्तर - " आणमणी" (आगे भी सर्वत्र इसी तरह समझना ) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy