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________________ दसवां चरम पद - संस्थान की अपेक्षा चरम अचरम आदि ३०९ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असंख्यात प्रदेशी और संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान क्या १. चरम है, २. अचरम है, ३. अनेक चरम, ४. अनेक अचरम रूप है, ५. चरमान्त प्रदेश है या ६. अचरमान्त प्रदेश है? उत्तर - हे गौतम! असंख्यात प्रदेशी और संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ परिमण्डल संस्थान के विषय में संख्यात प्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ़ के समान समझ लेना चाहिए यावत् आयत संस्थान पर्यन्त समझ लेना चाहिए। परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखिज पएसिए असंखिज्ज पएसोगाढे किं चरिमे अचरिमे जाव अचरिमंतपएसा? गोयमा! संखिज पएसिए असंख्रिज पएसोगाढे णो चरिमे जहा संखिज्ज पएसोगाढे। एवं जाव आयए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असंख्यात प्रदेशी और असंख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमंडल संस्थान क्या १. चरम है, २. अचरम हैं, ३. अनेक चरम रूप है, ४. अनेक अचरम रूप है, ५. चरमान्त प्रदेश है या ६. अचरमान्त प्रदेश है ? उत्तर - हे गौतम! असंख्यात प्रदेशी और असंख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमंडल संस्थान चरम नहीं है इत्यादि सारा कथन संख्यात प्रदेशावगाढ़ की तरह कह देना चाहिए। इसी प्रकार यावत् आयत संस्थान तक कह देना चाहिये। परिमंडले णं भंते! संठाणे अणंत पएसिए संखिज पएसोगाढे किं चरिमे अचरिमे जाव अचरिमंतपएसा? ____ गोयमा! तहेव जाव आयए। अणंत पएसिए असंखिज्ज पएसोगाढे जहा संखिज्ज पएसोगाढे, एवं आयए॥३६७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्त प्रदेशी और संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान क्या १. चरम है २. अचरम है, ३. अनेक चरम रूप है, ४. अनेक अचरम रूप है, ५. चरमान्त प्रदेश है या ६. अचरमान्त प्रदेश है? उत्तर - हे गौतम! इसकी प्ररूपणा संख्यात प्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ़ के समान यावत् आयत संस्थान तक समझ लेनी चाहिये। परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स संखिज़ पएसियस्स संखिज पएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वटुपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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