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नववां योनि पद - कूर्मोन्नता आदि तीन योनियाँ
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और ९ वासुदेव। ये चौपन्न ही उत्तम पुरुष गिनाये गये हैं उसमें वासुदेव के पद में प्रतिवासुदेव को अन्तर्भावित कर लिया गया हो ऐसी संभावना लगती है जबकि कूर्मोन्नता योनि में सामान्य पुरुषों का भी जन्म होता है तो प्रतिवासुदेव का जन्म भी कूर्मोन्नता योनि में ही होता है, ऐसा मानने में आगम की कोई बाधा नहीं है।
भगवान् महावीर स्वामी के दो माताएं थीं - देवानंदा और त्रिशला। दोनों के कर्मोन्नता योनि थी। कूर्मोन्नता और शंखावर्ता ये दो योनियाँ शुभ होती है। वंशीपत्रा योनि शुभ अशुभ दोनों प्रकार की होती है। ___ आगम में वर्णित युगल स्त्रियों के शरीर वर्णन को देखते हुए इनके भी कूर्मोन्नता योनि होना संभव है। देवियों के स्त्री रत्न की तरह शंखावर्ता योनि होती है ऐसा ग्रन्थों में बताया गया है। स्त्री रत्न के तो योनि में जीव आते हैं किन्तु जन्म नहीं लेते हैं। देवियों के तो कोई भी जीव गर्भ में आता ही नहीं है क्योंकि देव एवं देवियों का आगमों में औपपातिक जन्म बताया गया है। यहाँ पर कूर्मोन्नता आदि तीनों योनियों का वर्णन मात्र संख्यात वर्ष की आयु वाले (एक करोड़ पूर्व तक) कर्म भूमिज मनुष्यों की अपेक्षा से ही किया गया है इसलिए आगम में अन्य पंचेन्द्रिय जीवों के लिए वर्णन नहीं किया गया है। तथापि अन्य युगलिक एवं देवियों की शारीरिक रचना को देखते हुए उपयुक्त प्रकार से योनियों की संभावना की जा सकती है।
वंशीपत्रा योनि सामान्य पुरुषों की माताओं के होती है।
॥पण्णवणाए भगवईए णवमं जोणीपयं समत्तं॥ ॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र का नववां योनि पद समाप्त॥
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