SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ प्रज्ञापना सूत्र 00000000 निर्देश करने वाली तीन विशिष्ट योनियाँ बतलाई गई हैं - यथा - कूर्मोन्नता, शंखावर्ता और वंशीपत्रा। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, ये उत्तम पुरुष कूर्मोन्नता योनि में जन्म लेते हैं। चक्रवर्ती की मुख्य अग्रमहिषी जिसको 'स्त्री रत्न' कहा जाता है उसकी योनि को शंखावर्ता योनि कहते हैं। इसमें अनेक जीव आते हैं, गर्भ रूप में रहते हैं, उनके शरीर का चय उपचय होता है किन्तु कामाग्नि के प्रबल ताप से ये वहीं नष्ट हो जाते हैं। जन्म धारण नहीं करते हैं, गर्भ से बाहर नहीं आते हैं। इससे यह विदित होता है कि प्रबल कामभोग से गर्भस्थ जीव पनप नहीं सकता है। गर्भ में ही नष्ट हो जाता है। तीसरी वंशीपत्रा योनि है, उसमें शेष सर्व मनुष्यों का जन्म होता है। ___नोट - चक्रवर्ती के सात पंचेन्द्रिय रत्न और सात एकेन्द्रिय रत्न। इस प्रकार चौदह रत्न होते हैं। पंचेन्द्रिय रत्नों में एक 'स्त्रीरत्न' होता है जिसको 'श्री देवी' भी कहते हैं। वह वैताढ्य पर्वत की .. विद्याधरों की उत्तर श्रेणी में पैदा होती है और उसका पिता विद्याधर. अपनी पुत्री को चक्रवर्ती को भेंट रूप में प्रदान करता है। उसकी योनि को शङ्खावर्ता योनि कहते हैं। इसके विषय में पूज्य आचार्य श्री अमोलक ऋषि जी म. सा. द्वारा रचित "जैन तत्त्व प्रकाश" की द्वितीय आवृत्ति सन् १९११ पृष्ठ ७७ में लिखा है - "श्री देवी के सन्तान रूप में पुत्रादि उत्पन्न नहीं होते हैं लेकिन मोती रूप में उत्पन्न होते हैं।" आगम से तो यह बात स्पष्ट नहीं होती है किन्तु यदि मोती रूप में उत्पन्न हो तो आगम से किसी प्रकार की बाधा भी प्रतीत नहीं होती है। क्योंकि शंखावर्ता योनि में बहुत से पुद्गल भी आते हैं वे चय उपचय को प्राप्त होते हैं। इसलिए मोती रूप पुद्गल आवे तो आगमिक कोई बाधा नहीं है। . आठवें पद में प्राणियों के संज्ञा रूप परिणाम का कथन किया गया है अब इस नौवें पद में उनकी योनियों का निरूपण किया जाता है। इस पद का प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं - शीत आदि तीन योनियाँ कडविहा णं भंते! जोणी पण्णता? गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तंजहा-सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी॥३४३॥ कठिन शब्दार्थ - जोणी - योनि, सीया - शीत, उसिणा - उष्ण, सीओसिणा - शीतोष्ण। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! योनि कितने प्रकार की कही गई है। उत्तर - हे गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार हैं - १. शीत योनि २. उष्ण योनि और ३. शीतोष्ण योनि (मिश्र योनि)। विवेचन - प्रश्न - योनि किसे कहते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy