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छठा व्युत्क्रांति पदं कुतो द्वार
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स्थानों पर कहा गया है किन्तु प्रवचन सारोद्धार में अट्ठाईस लब्धियों के नाम गिनाएं गये हैं । आमर्ष औषधि विys औषधि यावत् अक्षीणमहानसी लब्धि आदि पुलाक लब्धि आदि अठाईस लब्धियों के नाम बताये गये हैं। इन में से कोई भी लब्धि जिस मुनिराज को प्राप्त होती है उसको ऋद्धि प्राप्त (लब्धि प्राप्त) कहते हैं। (जैन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग बोल नं० ९५४ बीकानेर )
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प्रस्तुत सूत्रों में कौन-कौन जीव कहाँ से यानी किन-किन गतियों से मृत्यु प्राप्त करके र आदि पर्यायों से उत्पन्न होते हैं इसका प्रतिपादन किया गया है।
सामान्य नैरयिकों और रत्नप्रभा के नैरयिकों में देव, नैरयिक, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय तथा असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले चतुष्पद खेचर उत्पन्न नहीं होते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में भी अपर्याप्त, सम्मूच्छिम मनुष्य तथा गर्भजों में अकर्मभूमिज और अंतरद्वीपज मनुष्यों तथा कर्मभूमियों में जो भी असंख्यात वर्ष की आयु वाले तथा संख्यात वर्ष की आयु वालों में अपर्याप्तक मनुष्यों से आकर उत्पन्न होने का निषेध है। शर्करा प्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में सम्मूच्छिमों से, वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में भुजपरिसर्पों से, पंकप्रभा के नैरयिकों में खेचरों से, धूमप्रभा नैरयिकों में चतुष्पदों से, तमः प्रभा नैरयिकों में उरः परिसर्पों से तथा तमस्तमापृथ्वी के नैरयिकों में स्त्रियों से उत्पन्न होने का निषेध है ।
भवनवासियों में देव, नैरयिक, पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, अपर्याप्तक तिर्यंच पंचेन्द्रियों तथा सम्मूर्च्छिम एवं अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पत्ति का निषेध है, शेष का विधान है। पृथ्वी - पानी - वनस्पतिकायिकों में सभी नैरयिक तथा सनत्कुमारादि देवों से एवं तेजस्काय वायुकाय बेइंन्द्रिय तेइन्द्रिय चउरिन्द्रियों में सभी नैरयिकों, सभी देवों से आकर उत्पत्ति का निषेध है तथा तिर्यंच पंचेन्द्रियों में आणत आदि देवों से आकर उत्पत्ति का निषेध है। मनुष्यों में सातवीं नरक के नैरयिकों तथा तेजस्काय वायुकाय से आकर उत्पत्ति का निषेध है ।
वाणव्यन्तर देवों में देव, नारक, पृथ्वी आदि पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, अपर्याप्तक तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा सम्मूर्च्छिम एवं अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पत्ति का निषेध है। ज्योतिषी देवों में सम्मूच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय, असंख्यात वर्ष की आयु वाले खेचर तथा अन्तरद्वीपज मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। सौधर्म और ईशानकल्प के देवों में तथा सनत्कुमार से सहस्रारकल्प तक के देवों में अकर्मभूमि मनुष्यों से भी आकर उत्पत्ति का निषेध है । आणत आदि देवलोकों में तिर्यंच पंचेन्द्रियों से, नौ ग्रैवेयकों में असंयतों तथा संयतासंयतों एवं विजयादि पांच अनुत्तर विमानों में मिथ्यादृष्टि मनुष्यों तथा प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं।
॥ पांचवां द्वार समाप्त ॥
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