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छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार
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गोयमा! णो णेरइएहितो उववजंति, तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहितो उववजंति, णो देवेहिंतो उववति। एवं जेहिंतो णेरइयाणं उववाओ तेहिंतो असुरकुमाराण वि भाणियव्वो, णवरं असंखिजवासाउय-अकम्म भूमग अंतरदीवग मणुस्स तिरिक्ख जोणिएहितो वि उववजंति, सेसं तं चेव। एवं जाव थणियकुमारा भाणियव्वा ॥३१०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से (किस गति से) आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों से आकर असुरकुमार उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार जहाँ से आकर नैरयिक उत्पन्न होते हैं वहाँ से आकर असुरकुमार का भी उपपात कहना चाहिए। विशेष यह है कि असंख्यात वर्ष की आयु वाले, अकर्मभूमिज एवं अन्तरद्वीपज मनुष्यों
और तिर्यंचों से भी उत्पन्न होते हैं। शेष सभी बातें पूर्वानुसार समझनी चाहिये। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कह देना चाहिये।
विवेचन - असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच युगलिक होते हैं। युगलिक मरकर देवगति में ही जाते हैं। अतः भवनपतियों में भी युगलिक उत्पन्न हो सकते हैं।
पुढवीकाइया णं भंते! कओहिंतो उववजंति किं णेरइएहिंतो उववजंति जाव देवेहिंतो उववजंति ? .. गोयमा ! णो णेरइएहिंतो उववजंति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहितो उववजंति, देवेहितो वि उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से, तिर्यंचों से, मनुष्यों से, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीव नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते किन्तु तिर्यंच योनिकों से, मनुष्यों से और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं।
जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति?
गोयमा! एनिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो वि उववजंति जाव पंचिंदिय-तिरिक्ख जोणिएहितो वि उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि वे पृथ्वीकायिक जीव तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न
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