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________________ छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार २०५ वालुयप्पभा पुढवी णेरइया णं भंते! कओहिंतो उववजति? गोयमा! जहा सक्करप्पभा पुढवी जेरइया, णवरं भुयपरिसप्पेहितो पडिसेहो कायव्वो। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उत्तर - हे गौतम! जैसे शर्करा प्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में कहा है वैसे ही इनकी उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिये। विशेष यह है कि भुजपरिसर्प से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये। अर्थात् तिर्यंचों में भुज परिसर्प तिर्यंच तीसरी नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं। पंकप्पभा पुढवी णेरइया णं भंते! कओहिंतो उववजंति? गोयमा! जहा वालुयप्पभा पुढवी णेरड्या, णवरं खहयरेहितो वि पडिसेहो कायव्वो। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उत्तर- हे गौतम! जैसे वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में कहा है वैसे ही इनकी उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिये। विशेष यह है कि खेचर से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये। अर्थात् खेचर जीव चौथी नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं, क्योंकि वे तीसरी नरक तक ही उत्पन्न हो सकते हैं। धूमप्पभा पुढवी जेरइयाणं भंते! कओहिंतो उववजंति ? गोयमा! जहा पंकप्पभा पुढवी जेरइया, णवरं चउप्पएहितो वि पडिसेहो कायव्यो। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! जैसे पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में कहा है, उसी प्रकार इनकी उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिये। विशेष यह है कि चतुष्पद से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये। अर्थात् चतुःष्पद स्थल. चर तिर्यंच भी पांचवीं नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं। . ___ तमा पुढवी णेरइया णं भंते! कओहिंतो उववजंति? गोयमा! जहा धूमप्पभा पुढवी णेरइया, णवरं थलयरेहितो वि पडिसेहो कायव्वो। इमेणं अभिलावेणं जइ पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति, किं जलयर पंचिंदिएहितो उववजंति, थलयर पंचिंदिएहितो उववजंति, खहयर पंचिंदिएहितो उववजंति? .. गोयमा! जलयर पंचिंदिएहिंतो उववजंति, णो थलयरेहिंतो उववजंति, णो खहयरेहिंतो उववजंति॥३०८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! छठी तम:प्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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