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________________ छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद्र स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न नहीं होते हैं। जइ परिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, किं उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति, भुयपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजति? गोयमा! दोहिंतो वि उववजति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं या भुजपरिसर्प 'स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक दोनों से ही अर्थात् उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और भुज परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। " जइ उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, किं सम्मुच्छिम उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, गब्भवक्कंतिय उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति? गोयमा! सम्मुच्छिमेहितो वि उववजंति, गब्भवक्कंतिएहितो वि उववजंति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूछिम उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं? ... उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक सम्मूर्छिम उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और गर्भज उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। ___ जइ सम्मुच्छिम उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति किं पजत्तएहितो उववजंति, अपजत्तएहिंतो उववजंति? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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