________________
चौथा स्थिति पद - नैरयिकों की स्थिति
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक शर्करा प्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की कही गई है।
वालुयप्पभा पुढवी जेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं तिण्णि सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं। अपज्जत्तय वालुयप्पभा पुढवी जेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। पजत्तय वालुयप्पभा पुढवी णेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णेणं तिण्णि सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति जघन्य तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गयी है? '
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त की कही गई है। . प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक-वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही
गई है?
- उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की कही गई है।
पंकप्पभा पुढवी जेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं। अपज्जत्तय पंकप्पभा पुढवी जेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org