________________
तीसरा बहुवक्तव्यता पद - महादंडक द्वार **************************************
३९९
**************
*********
****
****
(८४) उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं, क्योंकि अपर्याप्तक सूक्ष्म, से पर्याप्तक सूक्ष्म संख्यात गुणी स्थिति वाले होने से स्वभावतः सदैव संख्यात गुणा पाये जाते हैं।
(८५) उनकी अपेक्षा सामान्यरूप से सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें सूक्ष्म पृथ्वीकायिक आदि भी सम्मिलित है। . (८६) उनसे भी पर्याप्तक-अपर्याप्तक विशेषणरहित (सामान्य) सूक्ष्म विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक के जीव सम्मिलित हैं।
(८७) उनकी अपेक्षा भव्य जीव विशेषाधिक है, क्योंकि जघन्य युक्त अनन्तक प्रमाण अभव्यों को छोड़कर शेष सभी संसारी जीव भव्य हैं।
(८८) उनकी अपेक्षा निगोद जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि भव्य और अभव्य जीवों की राशि में से असंख्यात लोकाकाशप्रदेशों की राशि-प्रमाण प्रत्येक शरीरी जीवों को कम करें उतने ही होते हैं।
(८९) उनकी अपेक्षा वनस्पतिजीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सामान्य वनस्पतिकायिकों में प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक जीव भी सम्मिलित हैं।
(९०) वनस्पति जीवों की अपेक्षा एकेन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि उनमें सूक्ष्म एवं बादर पृथ्वीकायिक आदि का भी समावेश है।
(९१) एकेन्द्रियों की अपेक्षा तिर्यंचजीव विशेषाधिक है, क्योंकि तिर्यंच सामान्य में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तक सभी तिर्यंच सम्मिलित है।
(९२) तिर्यंचों की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि विशेषाधिक हैं, क्योंकि थोड़े-से अविरत सम्यग्दृष्टि आदि संज्ञी तिर्यंचों को छोड़कर शेष सभी तिर्यंच मिथ्यादृष्टि हैं, इसके अतिरिक्त अन्य गतियों के मिथ्यादृष्टि भी यहाँ सम्मिलित हैं, जिनमें असंख्यात नारक भी हैं अर्थात् इस बोल में तिर्यंच गति के सम्यग्दृष्टि जीव कम होते हैं तथा तीन गति के सभी मिथ्यादृष्टि जीव सम्मिलित हो जाते है। अधिक जीव मिलने से एवं कुछ जीव ही कम होने से पूर्व के बोल से यह बोल विशेषाधिक होता है।
(९३) मिथ्यादृष्टि जीवों की अपेक्षा अविरत जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें दूसरे तीसरे गुणस्थान वाले एवं अविरत सम्यग्दृष्टि भी समाविष्ट हैं।
(९४) अविरत जीवों की अपेक्षा सकषाय जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सकषाय जीवों में देशविरत से लेकर दशम गुणस्थान तक के सर्वविरत जीव भी सम्मिलित हैं।
(९५) उनकी अपेक्षा छद्मस्थ विशेषाधिक हैं, क्योंकि उपशान्तमोह आदि भी छद्मस्थों में सम्मिलित हैं। ___(९६) छद्मस्थ जीवों की अपेक्षा सयोगी विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें सयोगीकेवली गुणस्थान तक के जीवों का समावेश हो जाता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org