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________________ प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना ******************** ************************************************************** ९. ओजः प्रदेश प्रतर चतुरस्त्र - ९ परमाणुओं से बना और ९ आकाश प्रदेशों में रहा हुआ, तिरछे निरन्तर तीन प्रदेश वाली तीन पंक्तियाँ स्थापित करना। १०. युग्म प्रदेश-प्रतर चतुरस्त्र .. चार परमाणुओं से बना हुआ और चार आकाश प्रदेश में रहा हुआ। इसमें तिरछे दो आकाश प्रदेश वाली दो पंक्तियाँ स्थापित करना। ११. ओजः प्रदेश घन चतुरस्र - २७ परमाणुओं से बना हुआ और २७ आकाश प्रदेशों में रहा हुआ। इसमें ९ प्रदेश के बने हुए प्रतर के ऊपर नीचे ९-९ प्रदेश स्थापना जिससे २७ प्रदेशों का ओजः प्रदेश घन चतुरस्र होता है। १२. युग्म प्रदेश घन चतुरस्त्र - आठ परमाणुओं से उत्पन्न आठ प्रदेशों में रहा हुआ है इसमें चार प्रदेश के पूर्वोक्त प्रतर के ऊपर दूसरे चार परमाणु रखना। १३. ओजः प्रदेश श्रेण्यायत (श्रेणी आयत) - तीन परमाणु वाले और तीन आकाश प्रदेश में रहे हुए। इसमें निरन्तर तिरछे तीन परमाणु रखना। १४. युग्म प्रदेशा श्रेण्यायत - दो परमाणु वाले और दो आकाश प्रदेश में रहे हुए तिरछे दो परमाणु रखना। १५. ओजः प्रदेश प्रतरायत (प्रतर आयत) - १५ परमाणुओं से बना और १५ आकाश प्रदेशों में रहा हुआ है। इसमें पांच प्रदेशी तीन पंक्तियाँ तिरछी स्थापित करना। १६. यग्म प्रदेश प्रतरायत - छह परमाणुओं से बना और छह आकाश प्रदेश में रहा हआ। इसमें ३-३ प्रदेश की दो पंक्ति स्थापित करना। १७. ओजः प्रदेश घनायत (घन आयत) - ४५ परमाणुओं से उत्पन्न हुआ और उतने ही आकाश प्रदेशों में रहा हुआ। इसमें पूर्व कहे हुए १५ प्रदेश के प्रतरायत के ऊपर नीचे १५-१५ परमाणु रखना। १८. युग्म प्रदेश घनायत - १२ परमाणुओं से बना हुआ और बारह आकाश प्रदेश में रहा हुआ। इसमें पूर्वोक्त कहे हुए छह प्रदेश प्रतरायत के ऊपर उसी प्रकार उतने परमाणु रखना। १९. प्रतर परिमंडल - २० परमाणुओं से बना और २० आकाश प्रदेशों में रहा हुआ। पूर्वादि चार दिशाओं में प्रत्येक दिशा में ४-४ परमाणु स्थापित करना और विदिशाओं में प्रत्येक विदिशा में एक एक परमाणु रखना। ... २० घन परिमंडल - चालीस परमाणुओं से बना और चालीस आकाश प्रदेशों में रहा हुआ। इसमें २० परमाणुओं के ऊपर दूसरे २० परमाणु रखना। इस प्रकार संस्थानों की प्ररूपणा की है। क्योंकि जो इससे भी न्यून प्रदेश वाले होते हैं तो ऊपर कहे हुए संस्थान नहीं होते। यह अर्थ बताने वाली उत्तराध्ययन की नियुक्ति गाथाएँ इस प्रकार हैं - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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