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________________ Jain Education International तीसरा बहुवक्तव्यता पद - - काय द्वार उत्तर हे गौतम! सबसे थोड़े पर्याप्तक बादर निगोद हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर निगोद असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा हैं और उनसे भी पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद संख्यात गुणा हैं । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में पर्याप्तक और अपर्याप्तक सूक्ष्म बादर आदि प्रत्येक का पृथक् पृथक् अल्पबहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े पर्याप्तक बादर हैं क्योंकि वे परिमित क्षेत्र में रहते हैं। उनसे बादर अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि एक बादर पर्याप्तक के आश्रयी असंख्यात बादर अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। उनसे सूक्ष्म अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं। क्योंकि सर्वलोक व्यापी होने से उनका क्षेत्र असंख्यात गुणा हैं, उनसे सूक्ष्म पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं, वे अपर्याप्तक से लंबे काल तक रहने के कारण सदैव संख्यात गुणा होते हैं। यह चौथा अल्पबहुत्व कहा गया है। एएसि णं भंते! सुहुमाणं, सुहुम पुढवीकाइयाणं, सुहुम आउकाइयाणं, सुहुम तेउकाइयाणं, सुहुम वाउकाइयाणं, सुहुम वणस्सइकाइयाणं, सुहुम णिओयाणं, बायराणं, बायर पुढवीकाइयाणं, बायर आउकाइयाणं, बायर तेउकाइयाणं, बायर वाउकाइयाणं, बायर वणस्सइकाइयाणं, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइयाणं, बायर णिओयाणं, बायर तसकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बायर तेउकाइया पज्जत्तगा, बायर तसकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर तसकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया पज्जत्तंगा असंखिज्ज गुणा, बायर णिओया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर पुढविकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर आउकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर वाउकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर णिओया अपज्जत्तगा असंखिज गुणा, बायर पुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखिज गुणा, बायर आउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम तेउकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम ३२१ For Personal & Private Use Only ********************** www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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