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________________ तीसरा बहुवक्तव्यता पद - काय द्वार ३१९ * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *************************************************************** गोयमा! सव्वत्थोवा बायर पुढवीकाइया पजत्तगा, बायर पुढवीकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, सुहुम पुढवीकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, सुहुम पुढवीकाइया पज्जत्तगा संखिज्ज गुणा॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों और बादर पृथ्वीकायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सब से थोड़े पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं और उनसे भी पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक संख्यात गुणा हैं। एएसि णं भंते! सुहम आउकाइयाणं, बायर आउकाइयाणं च पजत्तापजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायर आउकाइया पज्जत्तगा, बायर आउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज गुणा, सुहुम आउकाइया अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम आउकाइया पजत्तंगा संखिज गुणा॥ - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिकों और बादर अप्कायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सब से थोड़े पर्याप्तक बादर अप्कायिक हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर अप्कायिक असंख्यात गुणा है, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक असंख्यात गुणा हैं और उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक संख्यात गुणा हैं। एएसि णं भंते! सुहुम तेउकाइयाणं, बायर तेउकाइयाणं च पजत्तापजत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायर तेउकाइया पज्जत्तगा, बायर तेउकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, सुहुम तेउकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, सुहुम तेउकाइया पजत्तगा संखिज गुणा॥ __ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिकों और बादर तेजस्कायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पर्याप्तक बादर तेजस्कायिक हैं उनसे अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक संख्यात गुणा हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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