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________________ तीसरा बहुवक्तव्यता पद - काय द्वार ..३१५ ********************************************************* * 4101121 0 ** ************* बादर की अल्प बहुत्व कहते हैं। प्रस्तुत प्रथम सूत्र में सामान्य रूप से सूक्ष्म बादर जीवों का अल्प बहुत्व कहा गया है। बादर संबंधी अल्पबहुत्व बादर के प्रथम सूत्र के अनुसार बादर वायुकाय तक जानना चाहिए। उसके बाद सूक्ष्म संबंधी अल्पबहुत्व भी सूक्ष्म के जो पांच सूत्र कहे हैं उनमें से प्रथम सत्र के अनुसार सूक्ष्म निगोद तक समझ लेना चाहिए। उसके बाद बादर वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं क्योंकि एक एक बादर निगोद में अनन्त जीव होते हैं। उनसे बादर जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि बादर तेजस्कायिक आदि का भी उसमें समावेश होता हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि बादर निगोद से सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा है उनसे सामान्य सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं। क्योंकि सूक्ष्म तेजस्कायिक आदि का भी उसमें समावेश होता है। इस प्रकार प्रथम अल्पबहुत्व कहा गया है। - एएसि णं भंते! सुहुम अपज्जत्तगाणं, सुहुम पुढवीकाइयाणं अपज्जत्तगाणं, सुहुम आउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं, सुहम तेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं सुहुम वाउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं, सुहुम वणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं सुहुम णिओयाणं अपज्जत्तगाणं बायर अपज्जत्तगाणं, बायर पुढवीकाइयाणं अपजत्तगाणं बायर आउकाइयाणं अपजत्तगाणं बायर तेउकाइयाणं अपजत्तगाणं, बायर वाउकाइयाणं अपजत्तगाणं बायर वणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइयाणं अपजत्तगाणं बायर णिओयाणं अपजत्तगाणं, बायर तसकाइयाणं अपजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायर तसकाइया अपजत्तगा, बायर तेउकाइया अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर णिओया अपजत्तगा असंखिज गुणा, बायर पुढवीकाइया अपज्जत्तगा असंखिज गुणा, बायर आउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज गुणा, बायर वाउकाइया अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम तेउकाइया अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, सुहुम पुढवीकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, सुहम आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम णिओया अपजत्तगा असंखिज गुणा, बायर वणस्सइकाइया अपजत्तगा अणंत गुणा, बायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुम वणस्सइकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, सुहुमा अपजत्तगा विसेसाहिया॥१६८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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