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________________ तीसरा बहुवक्तव्यता पद - काय द्वार विमान प्रस्तटों में, तिर्यग्लोक में कुओं में, तालाब, नदी, द्रह, बावडी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवरों, पंक्तिबद्ध सरोवरों, सरसर पंक्तिओं, बिलों, बिल पंक्तियों, झरनों, निर्झरों, चिल्लों, खाबोचियों, क्यारियों, द्वीपों, समुद्रों और सभी जलाशयों और जल के स्थानों में पर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिकों के स्थान कहे गये हैं । अतः असंख्यात गुणा क्षेत्र होने से बादर तेजस्कायिकों से असंख्यात गुणा प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक हैं। उनसे बादर निगोद असंख्यात गुणा हैं क्योंकि बादर निगोद की अवगाहना अत्यंत सूक्ष्म है। पानी में बादर निगोद सर्वत्र होती है क्योंकि पानी में पनक शैवाल आदि अवश्य होती है और वे बादर अनंत कायिक हैं। उनसे बादर पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि आठ पृथ्वियों में भवन, सभी विमान और पर्वत आदि होते हैं। उनसे बादर उप्कायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि समुद्रों में प्रचुर पानी है। उनसे बादर वायुकायिक असंख्यात गुणा हैं। क्योंकि सभी खाली स्थानों में वायु होती है। उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं क्योंकि प्रत्येक बादर निगोद में अनंत जीव होते हैं। उनसे सामान्य बादर जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि बादर त्रसकायिकों का भी उसमें समावेश होता है। इस प्रकार सामान्य बादर जीवों का प्रथम अल्प बहुत्व कहा गया है। पूर्व में काया की औघिक अल्पबहुत्व में 'त्रसकायिक' का वर्णन आया हैं यहाँ पर बादरों की अल्पबहुत्व में 'बादर त्रस कायिक' नाम आया है। त्रसकायिक और बादर त्रसकायिक में कोई अन्तर नहीं है। यहाँ पर बादर विशेषण मात्र स्वरूप दर्शक ही है अर्थात् सभी त्रसकायिक जीव बादर ही होते सूक्ष्म नहीं होते। यह बताने के लिए बादर विशेषण लगाया गया है। शेष पांचों स्थावर कायों में बादर विशेषण उनके सूक्ष्म के भेदों का व्यवच्छेद करने के लिए लगाया गया है। अर्थात् औधिक पांच स्थावर कायों से बादर एवं सूक्ष्म विशेषण वाले पांच स्थावरों में जीवों की संख्या में फर्क रहता है। अतः अलग-अलग भेद बताये गये हैं । ******************** एएसि णं भंते! बायर अपज्जत्तगाणं, बायर पुढवीकाइय अपज्जत्तगाणं, बायर आउकाइय अपज्जत्तगाणं, बायर तेउकाइय अपज्जत्तगाणं, बायर वाउकाइया अपज्जत्तगाणं, बायर वणस्सइकाइय अपज्जत्तगाणं, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइय अपज्जत्तगाणं, बायर णिओय अपज्जत्तगाणं, बायर तसकाइय अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा बायर तसकाइया अपज्जत्तगा, बायर तेडकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर णिओया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर पुढवीकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर आउकाइया अपज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर वाउकाइया Jain Education International ३०७ ***密密常省事倍 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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