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१८
प्रज्ञापना सूत्र
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(कोमल-सुहाला)। इन आठ. में चार स्पर्श स्वाभाविक हैं यथा - शीत (ठण्डा), उष्ण (गरम), रूक्ष (रूखा), स्निग्ध (चीकना), बाकी के चार स्पर्श स्वाभाविक नहीं हैं किन्तु दूसरों के संयोग से बनते हैं। परमाणु में चार स्वाभाविक स्पर्शों में से दो अविरोधी स्पर्श पाये जाते हैं यथा - शीत और रूक्ष अथवा शीत और स्निग्ध। इसी प्रकार उष्ण और रूक्ष अथवा उष्ण और स्निग्ध। रूपादि का परस्पर नियत संबंध है अतः जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श पाये जाते हों वह रूपी है। ऐसे रूपी अजीव की प्रज्ञापना-प्ररूपणा रूपी अजीव प्रज्ञापना है। अर्थात् पुद्गल स्वरूप अजीव की प्रज्ञापना यह भावार्थ है। क्योंकि पुद्गल ही रूपादि वाला होता है।
रूपी के अलावा धर्मास्तिकाय आदि अरूपी अजीव है। अरूपी अजीव की प्रज्ञापना अरूपी अजीव प्रज्ञापना कहलाती है। सूची कटाह न्याय से अल्प वक्तव्यता होने से सूत्रकार पहले अरूंपी अजीव की प्रज्ञापना बतलाते हैं -
___ अरूपी अजीव प्रज्ञापना से किं तं अरूवी अजीव पण्णवणा ? अरूवी अजीव पण्णवणा दसविहा पण्णत्ता तंजहा-धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पयेसा ( पदेसा) अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पयेसा (पदेसा), आगासत्थिकाए, आगासस्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पयेसा (पदेसा), अद्धा समए। सेत्तं अरूवी अजीव पण्णवणा॥३॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मत्थिकाए - धर्मास्तिकाय, देसे - देश, पयेसा (पदेसा) - प्रदेश, अधम्मत्थिकाए-अधर्मास्तिकाय, आगासस्थिकाए-आकाशास्तिकाय, अद्धा समए-अद्धा समय (काल)।
भावार्थ - प्रश्न - अरूपी अजीव प्रज्ञापना क्या है ? अथवा अरूपी अजीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की कही गयी है ?
उत्तर - अरूपी अजीव प्रज्ञापना दस प्रकार की कही गयी है - १. धर्मास्तिकाय २. धर्मास्तिकाय का देश ३. धर्मास्तिकाय का प्रदेश ४. अधर्मास्तिकाय ५. अधर्मास्तिकाय का देश ६. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश ७. आकाशास्तिकाय ८. आकाशास्तिकाय का देश ९. आकाशास्तिकाय का प्रदेश और १०. काल। यह अरूपी अजीव प्रज्ञापना है।
विवेचन - जिसमें वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि नहीं हो ऐसे अजीव पदार्थ अरूपी अजीव कहलाते हैं। अरूपी अजीव के मुख्य दस भेद होने से अरूपी अजीव की प्रज्ञापना भी दस प्रकार की कही गई है।
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