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________________ * 台南樂樂樂樂樂怡安南市省省 - दूसरा स्थान पद सिद्धों के स्थान अपेक्षा जघन्य अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल तथा उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष और ३२ अंगुल नोट जघन्य ( ३३३ धनुष १ हाथ और ८ अंगुल ) होती है इस प्रकार सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना बोलना चाहिये। यहाँ पर उपर्युक्त गाथाओं में एवं उववाई सूत्र में सिद्धों की अवगाहना के तीन प्रकार ( जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट ) बताये गये हैं। अन्यत्र आगमों में भगवती सूत्रादि में ( शतक ९ उद्देशक ३१ सोच्चा, असोच्चा केवली के वर्णन में) सिद्धों की अवगाहना के दो भेद - 'जघन्य, उत्कृष्ट' किये हैं । अतः अपेक्षा से अवगाहना के तीन प्रकार एवं दो प्रकार दोनों कहे जा सकते हैं। दोनों तरह से कहना अनुचित नहीं है। तीन प्रकार कहते समय उसका स्पष्टीकरण कर देना चाहिये। जैसे अवगाहना १ हाथ, ८ अंगुल - सामान्य केवली (२ हाथ वालों) की अपेक्षा समझना । मध्यम अवगाहना४ हाथ, १६ अंगुल - सामान्य केवली की अपेक्षा मध्यम व तीर्थंकर केवली की अपेक्षा जघन्य अवगाहना समझना। उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष ३२ अंगुल सभी केवलियों (सामान्य केवली व तीर्थंकर केवली सभी) की अपेक्षा उत्कृष्ट अवगाहना समझना । निष्कर्ष यह है कि अवगाहना के दोनों प्रकार के विभाग (तीन या दो) आगमों में बताये हुए होने से अपेक्षा विशेष से दोनों प्रकारों से कहने में कोई बाधा नहीं है। दोनों प्रकार उचित ही है। अतः दो भेद को सही कहना एवं तीन भेद को गलत कहना उचित नहीं है। किसी का भी आग्रह नहीं करते हुए आगमोक्त दोनों तरीकों से अवगाहना को बताना उचित ही लगता है 1 Jain Education International २६१ *********** - प्रश्न- दो हाथ के अवगाहना वाले कौन सिद्ध हुये ? उत्तर पण्णवणा सूत्रों आदि की टीका तथा प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थों में कूर्मापुत्र का उदाहरण दिया है जिनकी शरीर की अवगाहना दो हाथ थी । सिद्ध अवस्था में उनकी अवगाहना एक हाथ आठ अंगुल है। प्रश्न - तीर्थंकरों में जघन्य अवगाहना का उदाहरण कौनसा है ? उत्तर - अवसर्पिणी काल के अंतिम चौवीसवें तीर्थंकर और उत्सर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर के शरीर की अवगाहना सात हाथ की होती है। सिद्ध अवस्था में उनकी अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल होती है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सिद्ध अवस्था की अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल है। यह अवगाहना तीर्थंकर भगवन्तों की अपेक्षा जघन्य अवगाहना है। प्रश्न - उत्कृष्ट अवगाहना का उदाहरण क्या है ? For Personal & Private Use Only उत्तर - अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर और उत्सर्पिणी काल के चौवीसवें तीर्थंकर के शरीर की अवगाहना तथा पांचों महाविदेह क्षेत्र के सभी तीर्थंकरों के शरीर की अवगाहना ५०० धनुष की होती है तथा सामान्य केवलियों की उत्कृष्ट अवगाहना ५०० धनुष की हो सकती है। जैसे कि भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत - बाहुबली आदि सौ पुत्रों की अवगाहना ५०० धनुप की थी। www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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