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दूसरा स्थान पद - भवनवासी देव स्थान
"देवा असंघयणी, जम्हा तेसिं नेवट्ठी नेव सिरा ।"
अर्थात् - देव असंहननी होते हैं अर्थात् इन छह संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है । उनके शरीर में हड्डी और सिरा (मोटी नाड़ी) नहीं होती है अतः देवों में छह संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता किन्तु संहनन की तरह शक्ति विशेष होती है। अर्थात् उनके शरीर की मजबूती और दृढ़ता को ही संहनन समझना चाहिए। इसी अपेक्षा से यह मूल पाठ में " दिव्य संहनन" कहा है।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! दाहिणिल्ला असुरकुमारा देवा परिवसंति ?,
गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर जोयण सयसहस्स - बाहल्लाए उवरिं एगं जोयण सहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहुत्तरे जोयणसयसहस्से एत्थ णं दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं चउत्तीसं भवणावाससंयसहस्सा भवंतीति मक्खायं।
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णं भवणा बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा सो चेव वण्णओ जाव पडिरूवा । एत्थ दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । तिसुवि लोगस्स असंखिज्जइभागे । तत्थ णं बहवे दाहिणिल्ला असुरकुमारा देवा देवीओ य परिवसंति । काला, लोहियक्खा तहेव जाव भुंजमाणा विहरंति । एएसि णं तहेव तायत्तीसग लोगपाला भवंति । एवं सव्वत्थ भाणियव्वं । भवणवासी णं चमरे इत्थ असुरकुमारिंदे असुरकुमारराया परिवसइ काले महाणील सरिसे जाव पभासेमाणे । से णं तत्थ चउतीसाए भवणावास सयसहस्साणं, चउसट्ठीए सामाणिय साहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, पंचण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिन्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्ह य चउसट्ठीणं आयरक्ख देव साहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं दाहिणिल्लाणं देवाणं देवीणं च आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहरइ ॥ १०८ ॥
कठिन शब्दार्थ - दाहिणिल्लाणं - दाक्षिणात्य - दक्षिण दिशा वाले ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक दक्षिण दिशा वाले असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन्! दक्षिण दिशा वाले असुरकुमार देव कहाँ रहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में एक लाख अस्सी हजार
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