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________________ १३६ *************************** प्रज्ञापना सूत्र ************************************ य अचरिम समय बायरसंपराय सरागचरित्तारिया य । अहवा बायरसंपराय सरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा पडिवाई य अपडिवाई य । से तं बायरसंपरा सरागचरित्तारिया ॥ ७६ ॥ प्रश्न - बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? प्रथम उत्तर बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य 'प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं समय बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य और अप्रथम समय बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य अथवा चरम समय बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य और अचरम समय बादर सम्पराय सराग चारित्रः आर्य अथवा बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- प्रतिपाती और प्रतिपाती। इस प्रकार बादर सम्पराय सराग चारित्र आर्य कहे हैं। विवेचन प्रश्न चारित्र किसे कहते हैं ? Jain Education International 44 उत्तर - संस्कृत में "चर गति भक्षणयो" धातु है इस धातु से चारित्र शब्द बनता है उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार हैं 'अन्य जन उपात्त अष्टविध कर्म संचयस्य अपत्ययाय चरणं, सर्व सावद्य योग निवृति रूपं चरित्रं अथवा कर्मणां च यस्य ऋत्ती करणात् वा चारित्रम् । यथोक्तम "च य" ऋत्त कर्म होइ चरित्तम् इति । " अर्थ - अनेक जन्मों में उपार्जन किये हुए कर्मों के समूह (भंडार) को जिससे खाली किया जाए उसे चारित्र कहते हैं । प्रश्न - सराग चारित्र आर्य किसे कहते हैं ? - उत्तर - राग सहित चारित्र अथवा राग सहित पुरुष के चारित्र को सराग चारित्र कहते हैं । जो सराग चारित्र से आर्य हैं वे सराग चारित्र आर्य कहलाते हैं। प्रश्न- सूक्ष्म सम्पराय सराग चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसमें सूक्ष्म कषाय की विद्यमानता होती है वे सूक्ष्म संपराय सराग चारित्र वाले कहलाते हैं। प्रश्न- बादर सम्पराय सराग चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर- जिसमें स्थूल कषाय हो वे बादर सम्पराय सराग चारित्र वाले कहलाते हैं। प्रश्न- प्रथम समय बादर संपराय चारित्र आर्य किसे कहते हैं ? उत्तर - असंयम (पहला व चौथा गुणस्थान), संयमासंयम (पांचवां गुणस्थान) से अप्रमत संयत (सातवां गुणस्थान) में आने वाले एवं सूक्ष्म संपराय संयत (दसवां गुणस्थान) से अनिवृत्ति बादर गुणस्थान (नवमा गुणस्थान) में आने वाले प्रथम समयवर्ती जीव प्रथम समय बादर संपराय चारित्र आर्य कहे जाते हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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