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. विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ जीव-चैतन्य की एकता, जीव के प्राणों की पृथक्ता तथा भव्य-अभव्य
६. १० .२ . १०६९-- ७१ जीवों के सुख-दुःखादि वेदने का वर्णन ६ १० २ १०७२-- ७३ जीव द्रव्य से शाश्वत भाव से अशाश्वत है ७ . २ ३. ११२८- ३० जीव द्रव्याथिक नय से शाश्वत पर्यायाथिक __नय से अशाश्वत है
___७ ३ ३ ११४३-- ४५ जीव हाथी व कुंथुए का समान है । राजप्रश्नीय सूत्र का निर्देश
७ ८ ३ ११८२-- ८३ . जीव के शरीर और अवयवों के बीच में रहे
आत्म-प्रदेशों को अग्नि आदि कोई बाधा नहीं होती (श. १८ उ. ७ भाग ६ पृ. २७२९-३० में भी)
८ ३ ३ १३७९-- ७० जीव के प्रदेश लोकाकाश के प्रदेशों जितने हैं ८ १० , ३ १५५१-- " ५२ जीवादि पुद्गल-पुपली तथा सिद्ध पुद्गल ८ १० ३. १५६५-- ६७ जम्बूद्वीप कहां है ? जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का निर्देश ६ १. ४ १५७२-- ७३ जमाली वर्णन
९ ३३ ४ १७०५-- ७१ जागरिका तीन का वर्णन
१२ १ ४ १९८२-- ८३ जयन्ति श्राविका के प्रश्न
१२ २ . ४ १९८६-- ९८ ज्योतिषियों व तदंतरगत व्यन्तर व भवनपतियों के काम-भोगों का वर्णन
१२ ६ ४ २०६७- ७० जीव ने पूरे लोक में अनन्त बार जन्म-मरण
किया है, सभी स्थान व सभी जीवों से संबंध
कर चुका है। बकरियों के बाड़े का दृष्टांत १२ ७ ४ २०७०- ८१ जीव एक समय में सुखी, एक समय में दुःखी : १४ ४ . ५ २३०५- ६ मुंभक देवों के भेद, स्थिति, निवास, कोप आदि . १४ ८ ५ २३५१- ५४ जरा शारीरिक शोक मानसिक का वर्णन १६ २ ५ २५१७- १९
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