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________________ 'विषय (६) Jain Education International शतक उद्देशक भाग पृष्ठ (ई.) ईर्यापथिकी ओर सांपरायिकी में से एक क्रिया लगती है इंद्रिय अधिकार प्रज्ञापना का निर्देश ३ इंद्र, सामानिक, श्रायस्त्रिश, लोकपाल आदि तथा कुरुदत्त अनगार की ऋद्धि आदि का वर्णन ईशानेंद्र ( तामलीतापस के जीव ) का वर्णन इंद्रों के आत्म-रक्षक ३ ३ ३ इंद्रों के विषयाधिकार पर जीवाभिगम का निर्देश इंद्रों की परिषदाएँ ३ ईर्यापथिकी ओर सांपरायिकी क्रिया किस के लगती है ७ (श. ७ उ. ७ भाग ३ पृ. ११६८-६९ में भी ) इंगाल, धूम, संयोजना दोष का वर्णन ७ इंद्र, लोकपाल व ८८ महाग्रहों की अग्रमहिषियों तथा सौधर्म सभा में मैथुन - क्रिया इंद्रादि के भोग भोगने के लिए विकुर्वणा ईशानेंद्र की सुधर्मा सभा का वर्णन ईर्या-शोधन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर नीचे पंचेंद्रिय जीव भी मर जाय, तो भी पथिकी क्रिया लगती है। इंद्रिय उपचयादि पर प्रज्ञापना का निर्देश (उ) १ २ १० १४ १७. १५ २० १ २ उत्पत्ति विरह काल पर प्रज्ञापना का निर्देश उश्वास निःश्वास पर चौबीस दण्डक उद्योत - अंधकार का चौबीस दण्डक आश्रित वर्णन ५ उष्ण ऋतु में अल्पाहारी होते हुए भी वनस्पति शोभित क्यों होती है ? ७ For Personal & Private Use Only ܘܕ ४ १ १ ६ ह १० १ १ ५ ६ ५ ८ ४ १० १ ε - ३ १ २ २ २ २ २ ५५३-६६ ५६७- ९५ ७०६-- ७ ७३२-- ૩૪ ७३४ ३८ ३१०९३ -- ९५ ३७१-- ७४ ४५७-- ५८ ३ १०९५- ४ १८१९- ५ २३२५५२६२६ ६ २७३६- ६ २८४४ १ १ २ ९९ ३९ २६ ३० ३७ ३.७४ ३७७-- ८५ ९१५-- ..१९ ३ ११३०- ३२ www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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