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'विषय
(६)
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शतक उद्देशक भाग पृष्ठ
(ई.)
ईर्यापथिकी ओर सांपरायिकी में से एक क्रिया
लगती है
इंद्रिय अधिकार प्रज्ञापना का निर्देश
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इंद्र, सामानिक, श्रायस्त्रिश, लोकपाल आदि तथा कुरुदत्त अनगार की ऋद्धि आदि का वर्णन ईशानेंद्र ( तामलीतापस के जीव ) का वर्णन इंद्रों के आत्म-रक्षक
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इंद्रों के विषयाधिकार पर जीवाभिगम का निर्देश इंद्रों की परिषदाएँ
३
ईर्यापथिकी ओर सांपरायिकी क्रिया किस के लगती है ७ (श. ७ उ. ७ भाग ३ पृ. ११६८-६९ में भी ) इंगाल, धूम, संयोजना दोष का वर्णन
७
इंद्र, लोकपाल व ८८ महाग्रहों की अग्रमहिषियों तथा सौधर्म सभा में मैथुन - क्रिया
इंद्रादि के भोग भोगने के लिए विकुर्वणा ईशानेंद्र की सुधर्मा सभा का वर्णन ईर्या-शोधन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर नीचे पंचेंद्रिय जीव भी मर जाय, तो भी पथिकी क्रिया लगती है। इंद्रिय उपचयादि पर प्रज्ञापना का निर्देश
(उ)
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उत्पत्ति विरह काल पर प्रज्ञापना का निर्देश उश्वास निःश्वास पर चौबीस दण्डक उद्योत - अंधकार का चौबीस दण्डक आश्रित वर्णन ५ उष्ण ऋतु में अल्पाहारी होते हुए भी वनस्पति शोभित क्यों होती है ?
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५५३-६६
५६७-
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७०६-- ७
७३२-- ૩૪
७३४
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३१०९३ --
९५
३७१-- ७४
४५७-- ५८
३ १०९५-
४ १८१९-
५ २३२५५२६२६
६ २७३६-
६ २८४४
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९९
३९
२६
३०
३७
३.७४
३७७-- ८५
९१५-- ..१९
३ ११३०- ३२
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