________________
३८१०
भगवती सूत्र-उपसंहार
हे भगवन् ! यह उसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह अवितथ-सत्य है । हे भगवन् ! यह असंदिग्ध-सन्देह रहित है। हे भगवन् ! यह इच्छित है । हे भगवन् ! यह प्रतीच्छित-विशेष रूप से इच्छित (स्वीकृत) है । हे भगवन् ! यह इच्छितप्रतीच्छित है । हे भगवन् ! यह अर्थ सत्य है, जैसा आप कहते हैं । अरिहन्त भगवन्त पवित्र वचन वाले होते हैं। अरिहन्त भगवन्त अपूर्व वचन वाले होते हैं अर्थात् अरिहन्त भगवन्तों की वाणी पवित्र और अपूर्व होती हैं।" ऐसा कह कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी को पुनः वन्दन-नमस्कार करते हैं। वन्दननमस्कार कर के संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं।
॥ राशि-युग्म शतक सम्पूर्ण ॥
उपसंहार
सव्वाए भगवईए अट्ठतीसं सयं १३८ सयाणं, उद्देसगाणं १९२५।
चुलसीय सयसहस्सा पयाण पवरवरणाणदंसीहि । भावाभावमणंता पण्णत्ता एत्थमंगंमि ॥१॥ तवणियमविणयवेलो जयइ सदा णाणविमलविउलजलो। हेउसयविउलवेगो संघसमुद्दो गुणविसालो ॥ २ ॥ भगवती सूत्र के सभी मिला कर १३८ शतक होते हैं और १९२५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org