SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 651
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८०२ भगवती सूत्र - श. ४१ उ. ९-२० भावार्थ - कृष्णलेश्या वाले कल्योज राशि नेरयिक आदि का उद्देशक मी इसी प्रकार | परिमाण और संवेध औधिक उद्देशक के अनुसार जानो । - जहा कण्हलेस्सेहिं एवं णीललेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा णिरवसेसा । णवरं णेरइयाणं उववाओ जहा वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव | 'सेवं भंते० । ४१-९-१२ ॥ ९-१२ उद्देसा समत्ता ॥ क भावार्थ - कृष्णलेश्या वाले जीवों के भी चार उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिये, परन्तु का उपपात जानना चाहिये । शेष पूर्ववत् । - काउलेस्सेहि वि एवं चैव चत्तारि उद्देसगा कायव्वा । णवरं रहयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए, सेसं तं चैव । ४१-१६ । ॥ १३-१६ उद्देसा समत्ता ॥ अनुसार नीललेश्या वाले जीवों के वालुकाप्रमा के समान नैरयिक भावार्थ- कापोतलेश्या के भी इसी प्रकार चार उद्देशक करना चाहिये । नैरयिक का उपपात रत्नप्रभा पृथ्वी के समान । शेष पूर्ववत् । १ प्रश्न - तेउलेस्सरा सीजुम्मकडजुम्म असुरकुमारा णं भंते ! कओ उववज्जंति ? १ उत्तर - एवं चेव । णवरं जेसु तेउलेस्सा अत्थि तेसु भाणियव्वं । एवं एए वि कण्हलेस्सासरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्वा ।। १७ - २० उसा समत्ता । Jain Education International भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि तेजोलेश्या वाले असुरकुमार कहाँ से आते हैं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy