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भगवती सूत्र - श. ४१ उ. ९-२०
भावार्थ - कृष्णलेश्या वाले कल्योज राशि नेरयिक आदि का उद्देशक मी इसी प्रकार | परिमाण और संवेध औधिक उद्देशक के अनुसार जानो । - जहा कण्हलेस्सेहिं एवं णीललेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा णिरवसेसा । णवरं णेरइयाणं उववाओ जहा वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव | 'सेवं भंते० । ४१-९-१२ ॥ ९-१२ उद्देसा समत्ता ॥
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भावार्थ - कृष्णलेश्या वाले जीवों के भी चार उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिये, परन्तु का उपपात जानना चाहिये । शेष पूर्ववत् ।
- काउलेस्सेहि वि एवं चैव चत्तारि उद्देसगा कायव्वा । णवरं रहयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए, सेसं तं चैव । ४१-१६ । ॥ १३-१६ उद्देसा समत्ता ॥
अनुसार नीललेश्या वाले जीवों के वालुकाप्रमा के समान नैरयिक
भावार्थ- कापोतलेश्या के भी इसी प्रकार चार उद्देशक करना चाहिये । नैरयिक का उपपात रत्नप्रभा पृथ्वी के समान । शेष पूर्ववत् ।
१ प्रश्न - तेउलेस्सरा सीजुम्मकडजुम्म असुरकुमारा णं भंते ! कओ उववज्जंति ?
१ उत्तर - एवं चेव । णवरं जेसु तेउलेस्सा अत्थि तेसु भाणियव्वं । एवं एए वि कण्हलेस्सासरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्वा ।। १७ - २० उसा समत्ता ।
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भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि तेजोलेश्या वाले असुरकुमार कहाँ से आते हैं ?
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