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भगवती मूत्र-श ४० अवान्तर शतक १
६ प्रश्न-उववाओ, परिमाणं आहारो जहा एएसिं चेव पढमो. देसए । ओगाहणा बंधो वेयो वेयणा उदयी उदीरगा य जहा बेइंदियाणं पढमसमयाणं, तहेव कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा । सेस जहा बेइंदियाणं पढमसमइयाणं जाव अणंतखुत्तो। णवरं इत्थिवेयगा वा पुरिसवेयगा वा णपुंसगवेयगा वा, सण्णिणो णो असणिणो, सेसं तहेव । एवं सोलससु वि जुम्मेसु परिमाणं तहेव सव्वं ॥ ४०-२॥ . -एवं एत्थ वि एकारस उद्देसगा तहेव, पढमो तइओ पंचमो य
सरिसगमा, सेसा अट्ठ वि सरिसगमा । चउत्थ-अट्ठम-दसमेसु णत्थि विसेसो कायवो।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति .* ॥ चत्तालीसइमे सए पढमं सणिपंत्रिंदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥
___ भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रथम समय के कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संज्ञो पञ्चेन्द्रिय जीव कहाँ से आते हैं ?
६ उत्तर-हे गौतम ! उपपात, परिमाण और आहार प्रथम उद्देशक के अनुसार । प्रथम समय के बेइन्द्रिय जीवों के समान अवगाहना, बन्ध, वेद, वेदना, उदयो, उदीरक जानना चाहिए । कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी भी उसी प्रकार । शेष प्रथम समयोत्पन्न बेइन्द्रिय के समान यावत् 'पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं। वे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी होते हैं । संज्ञो और असंज्ञी इत्यादि पूर्ववत् । इसी प्रकार सोलह युग्मों में जानना चाहिये । परिमाण आदि वक्तव्यता पूर्ववत् । ४०-२।
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