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शतक ३८ (चौरिंद्रिय महायुग्म शतक) -चरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायब्वा । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजहभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । ठिई जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा । सेसं जहा बेइंदियाणं ।
** 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति * ॥ बरिं दियमहाजुम्मसया समत्ता ॥
॥ अट्टतीसइमं संयं समत्तं ॥
-इसी प्रकार चौरिन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक कहने चाहिये । विशेष में अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गाऊ। स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास । शेष बेइन्द्रियों के समान ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ अड़तीसवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
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