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अवान्तर शतक ७-१२
- नीललेस्सभवसिद्धियए गिंदिएस सयं सत्तमं । एवं काउलेस्सभवसिद्धिय ए गिदिएहि वि अट्टमं सयं । जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाणि एवं अभवसिद्धि हि वि चत्तारि सयाणि भाणियव्वाणि । णवरं चरम अचरमवज्जा णव उद्देगा भाणियव्वा, सेसं तं चैव । एवं एयाई बारस एगिंदिय सेटीसयाई ।
* 'सेवं भंते! सेवं भंते' ! त्ति जाव विहरइ | एगिंदियमेढीसयाई समत्ताई ॥ || चउतीसइमं एगिंदियसेदिसयं समत्तं ॥
- नीललेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव का सातवां शतक ३४-७ । इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव का आठवां शतक ३४-८ । भवसिद्धिक जीव के चार शतक अनुसार अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव के भी चार शतक कहना चाहिये । परन्तु इनमें चरम और अचरम छोड़ कर शेष नौ उद्देशक कहने चाहिये। शेष पूर्ववत् । इस प्रकार ये बारह एकेन्द्रिय श्रेणी शतक कहे हैं ।
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'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन -- इसमें ऋज्वायतादि श्रेणियों की प्रधानता होने से इस चौतीसवें शतक का नाम 'श्रेणी शतक' दिया है ।
॥ चौतीसवें शतक के अवान्तर शक्तक ७ - १२ सम्पूर्ण ॥
॥ चौतीसवाँ श्रेणी शतक सम्पूर्ण ॥
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