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________________ भगवती सूत्र-श. ३ ४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति ३७०५ एवं एएणं गमएणं जाव सुहृमवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुट्ठमवणस्सइ. काइएसु पज्जत्तएसु चेव भाणियव्वो । २२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्व चरमान्त में मरण-समुदघात कर के लोक के पूर्व चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने योग्य है, तो वह कितने समय की विग्रहगति? २२ उत्तर-हे गौतम ! एक दो, तीन, या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि यावत् चार समय की विग्रहगति.? उत्तर-हे गौतम ! मैने सात श्रेणियां कही हैं। यथा-ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाल । यदि ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होता है, तो एक समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । यदि एकतोय का श्रेणी से उत्पन्न होता है, तो दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, यदि उभयतोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है, तो जो एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और यदि विश्रेणी में उत्पन्न होने योग्य है, तो वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। हे गौतम! इस कारण पूर्वोक्त कथन है । इस प्रकार.अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव का लोक के पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के लोक के पूर्व चरमान्त में ही अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिक में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक में, अपप्ति और पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक में, अपर्याप्त और पर्याप्त बादर वायुकायिक में तथा अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक में, इस प्रकार इन बारह स्थानों में क्रमपूर्वक उपपात कहना चाहिये । पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव का उपपात भी इसी प्रकार बारह स्थानों में कहना चाहिये । इस प्रकार इस गमक से यावत् पर्याप्त सूक्ष्म बनस्पतिकायिक का उपपात पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक में भी कहना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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