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भगवती मूत्र-ग. ३३ अवान्तर शनक १२
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णव णव उद्देसगा भवंति, एवं एयाणि बारस एगिदियसयाणि भवंति ।
॥ बारसमं पगिदियमयं समत्तं ॥
॥ तेत्तीसइमं सयं समत्तं ॥
-इसी प्रकार कापोत लेश्या वाले अमवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी कहना चाहिये । अभवसिद्धिक के चार शतक हैं और प्रत्येक में नौ-नौ उद्देशक हैं। इस प्रकार कुल मिला कर एकेन्द्रिय के बारह शतक हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते है।
॥ तेतीसवें शतक का बारहवाँ अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥
- || तेतीसवाँ सतक सम्पूर्ण ॥ .
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