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. भगवती सूत्र-श. ३० उ. ३ अनन्त रोपपनक क्रियावादी..
७ उत्तर-गोयमा ! भवसिद्धिया, णो अभवसिद्धिया । एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए णेरइयाणं वत्तव्वया भणिया तहेव इह वि भाणियव्वा जाव अणागागेवउत्तत्ति । एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्यं । इमं से लक्खणं-जे किरियावाई सुस्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्टीया एए सब्वे भवसिद्धिया, णो अभवसिद्धिया, सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि ।
8 सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति *
॥ तीसइमे सप बीओ उद्देसो समत्तो । भावार्थ-७ प्रश्न--हे भगवन् ! सलेशी अनन्तरोपपन्नक क्रियावादी नरयिक, भवसिद्धिक हैं ?
७ उत्तर-हे गौतम ! भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं। इसी प्रकार इस अभिलाप से, औधिक उद्देशक में नरपिक की वक्तव्यता है, उसी प्रकार यहां भी समझना चाहिये, यावत् अनाकारोपयुक्त और वैमानिक पर्यन्त, जिसके जो हो, वही समझना चाहिये । उसका लक्षण यह है कि क्रियावादी, शुक्ल. पाक्षिक और सम्यमिथ्यादष्टि, ये सभी भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं । शेष सभी भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
: "विवेचन तत्काल उत्पन्न हुआ जीव 'अनन्त रोपपन्नक' कहलाता है । इस दूसरे उद्देशक में सभी कथन अनन्तरोपपन्नक की अपेक्षा किया है।
क्रियावादी, शुक्लपाक्षिक और सम्यग्मिध्यादृष्टि, ये भव्य ही होते हैं, अभव्य नहीं।
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