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भगवती मूत्र- ग. २६ उ. १ नैरयिक. के पाप-बन्ध
इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक । पृथ्वीकायिक जीवों में भी सभी स्थानों में चारों भंग होते हैं, किन्तु कृष्णपाक्षिक में पहला और तीसरा भंग होता है ।
२५ प्रश्न-तेउलेस्से-पुच्छा।
२५ उत्तर-गोयमा ! बंधी ण बंधड़ बंधिस्सइ, सेसेसु सव्वत्थ चत्तारि भंगा । एवं आउकाइय-वणस्सइकाइयाण वि णिश्वसेसं । तेउकाइय-चाउकाइयाणं सव्वत्थ वि पढम-तइया भंगा। बेइंदिय-सेइं. दिय-चरिंदियाणं पि सम्वत्थ वि पढम-तइया भंगा । णवरं सम्मत्ते, णाणे,आभिणिबोहियणाणे,सुयणाणे तइओ भंगो। पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं कण्हपपिखए पढम तइया भंगा, सम्मामिन् छत्ते तइय-चउत्थो भंगो, सम्मत्ते णाणे, आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे एएसु... पंचसु वि परसु बिइयविहणा भंगा, सेमेसु चत्तारि भंगा । मणुस्साणं जहा जीवाणं । णवरं सम्मत्ते, ओहिए णाणे, आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे एएसु बिहयविहूणा भंगा, सेसं तं चेव । वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा । णामं गोयं अंतरायं च एयाणि जहा णाणावरणिज्ज।
'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति जाव विहरइ * ॥ छवीसहमे सए बंधिसए पढमो उद्देसओ समत्तो॥
भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! तेजोलेशी (पृथ्वीकायिक) जीव ने आय: कर्म बांधा था० ?
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